प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा ने आज सुबह मोक्षदा एकादशी के दिन प्रातः 6:10 बजे देह त्याग दी। उनका निधन निमाड़ के भट्यान स्थित आश्रम में हुआ, जहां वे बीते कुछ दिनों से अस्वस्थ थे। बाबा 100 वर्ष से अधिक आयु के थे। आज शाम नर्मदा नदी के किनारे उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
अंतिम यात्रा की तैयारियां
बाबा की अंतिम यात्रा आज दोपहर 3 बजे निकलेगी। उनके अंत्येष्टि के लिए चंदन की लकड़ी की व्यवस्था की गई है। भक्त बड़ी संख्या में उनके अंतिम दर्शन के लिए आश्रम पहुंच रहे हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव भी अंतिम दर्शन करने के लिए आश्रम आएंगे।
आध्यात्मिक जीवन की झलक
सियाराम बाबा ने अपनी जीवन यात्रा में गहन साधना और तपस्या की। वे 12 वर्षों तक मौन व्रत में रहे और नर्मदा नदी के किनारे तपस्या करते हुए अपना जीवन व्यतीत किया। मौन व्रत समाप्त करने के बाद उन्होंने पहला शब्द “सियाराम” कहा, जिसके बाद भक्तों ने उन्हें सियाराम बाबा के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।

दान की अनूठी नीति
सियाराम बाबा का आश्रम भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र था। बाबा ने कभी अधिक दान स्वीकार नहीं किया। वे केवल 10 रुपये का दान स्वीकारते थे, जिसे आश्रम की गतिविधियों में उपयोग किया जाता था। उनका मानना था कि सादगी और तपस्या से ही जीवन का सच्चा मार्ग मिलता है।
आश्रम और भक्तों की श्रद्धा
बाबा ने नर्मदा नदी के किनारे अपना आश्रम स्थापित किया था, जहां हर महीने हजारों भक्त उनसे आशीर्वाद लेने आते थे। वे केवल भक्तों के साथ मिलकर साधना और भजन को महत्व देते थे।
स्वास्थ्य और देखभाल
बाबा को कुछ समय से निमोनिया था, लेकिन उन्होंने अस्पताल में रहने की बजाय आश्रम में ही अपने भक्तों के बीच समय बिताने की इच्छा व्यक्त की। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके स्वास्थ्य की निगरानी के लिए डॉक्टरों की टीम तैनात की थी।
बाबा की शिक्षाओं का प्रभाव
सियाराम बाबा का जीवन साधना, सेवा और सादगी का प्रतीक था। उनका निधन न केवल उनके अनुयायियों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति है।
उनके मोक्ष के साथ, उनके उपदेश और साधना भक्तों के जीवन में प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।
Author: Sweta Sharma
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