नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने तीन उच्च न्यायालयों में स्थायी न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए सात अतिरिक्त न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की है। यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका में महत्वपूर्ण बदलाव को इंगित करता है, जो न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाता है।
कॉलेजियम, जो सर्वोच्च न्यायालय के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक समूह है, न्यायपालिका की नियुक्तियों और समायोजन की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाता है। कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशें न्यायपालिका की स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि न्यायाधीशों की नियुक्तियां केवल उनकी योग्यता और निष्पक्षता पर आधारित हों, न कि राजनीतिक दबावों के तहत।
कॉलेजियम में न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं। कॉलेजियम ने 12 दिसंबर को बैठक की और पंजाब, कर्नाटक तथा दिल्ली के उच्च न्यायालयों में सात न्यायाधीशों को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिए तीन प्रस्ताव पारित किए।
कॉलेजियम ने अतिरिक्त न्यायाधीश हरप्रीत सिंह बराड़ को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने को मंजूरी दी।
कॉलेजियम ने तीन अतिरिक्त न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति रामचंद्र दत्तात्रेय हुद्दार, न्यायमूर्ति वेंकटेश नाइक टी. और न्यायमूर्ति विजयकुमार ए. पाटिल की कर्नाटक उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति को भी मंजूरी दे दी।
कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के लिए दो अतिरिक्त न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति शलिंदर कौर और न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने जिन न्यायाधीशों की स्थायी नियुक्ति की सिफारिश की है, उनमें कई राज्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश शामिल हैं। यह कदम उन न्यायधीशों के करियर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, जो पहले अंतरिम या अस्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे थे। स्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति से न्यायालयों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया में स्थिरता और निरंतरता बनी रहती है।
इसके अलावा, कॉलेजियम द्वारा की गई इस सिफारिश से न्यायपालिका में विश्वास बढ़ेगा और यह न्याय की त्वरित और निष्पक्ष उपलब्धता में सहायक होगा। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करते हुए इस तरह की नियुक्तियाँ भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
