सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें त्रिशूर पूरम उत्सव के दौरान हाथियों और लोगों के बीच कम से कम 3 मीटर की दूरी बनाए रखने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परंपराओं और पशु अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 250 साल पुरानी धार्मिक प्रथाओं और परंपराओं को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पशु अधिकारों के नियमों का पालन किया जाना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि परंपराओं को खत्म कर दिया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत स्वत: संज्ञान लेना हर परिस्थिति में उचित नहीं हो सकता। त्रिशूर पूरम उत्सव के आयोजनकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस बीवी नागरथना और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने हाई कोर्ट के आदेश की वैधता पर सवाल उठाए।
हाई कोर्ट का आदेश और उसका प्रभाव
13 नवंबर को केरल हाई कोर्ट ने जुलूस के दौरान हाथियों और लोगों के बीच 3 मीटर की दूरी बनाए रखने का आदेश दिया था। यह निर्देश केरल कैप्टिव एलीफैंट्स (प्रबंधन और रखरखाव) नियम, 2012 के तहत दिए गए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में नियमों के उल्लंघन की कोई शिकायत नहीं पाई गई है, और हाई कोर्ट का आदेश अनुचित हस्तक्षेप हो सकता है।
यूनेस्को की धरोहर में शामिल त्रिशूर पूरम उत्सव
त्रिशूर पूरम उत्सव, जो 250 साल पुरानी परंपरा है और यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, के आयोजनकर्ताओं ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। उनके अनुसार, यह धार्मिक प्रथा का एक अभिन्न हिस्सा है और इस पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि यह उत्सव के मूल स्वरूप और उसकी पवित्रता को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि दिशा-निर्देश उत्सव की परंपरा के विपरीत हैं।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलन पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी है कि परंपराओं को संरक्षित किया जाए, जबकि पशु अधिकारों और नियमों का भी पालन हो। कोर्ट ने इस मामले में सख्त अनुपालन का निर्देश दिया और कहा कि सभी पक्षों को समन्वय और संतुलन बनाना चाहिए।

Author: Sweta Sharma
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