सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी अभियुक्त को आरोप तय किए बिना करीब पांच वर्षों तक कैद रखा जाता है, तो यह सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट और महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि वे एक ऐसा तंत्र विकसित करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आरोपियों को हर तारीख पर ट्रायल जज के समक्ष शारीरिक रूप से या वर्चुअल रूप से पेश किया जाए।
दरअसल, मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) के तहत गिरफ्तार एक आरोपी की जमानत याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि यह समस्या अकेली नहीं है, बल्कि कई मामलों में ऐसी स्थिति देखी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि पिछले छह वर्षों में 102 तारीखों में से अधिकतर तारीखों पर अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह स्थिति पीड़ितों के अधिकारों के लिए भी हानिकारक है।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल, महाराष्ट्र राज्य के गृह सचिव और विधि एवं न्याय सचिव को निर्देश दिया है कि वे मिलकर एक ऐसा तंत्र तैयार करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आगामी तारीखों पर अभियुक्तों को शारीरिक रूप से या वर्चुअल रूप से ट्रायल जज के सामने पेश किया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश की प्रति उच्च न्यायालय के महापंजीयक और महाराष्ट्र सरकार के गृह और विधि एवं न्याय सचिवों को भेजने का भी निर्देश दिया है, ताकि इस पर तत्काल कार्रवाई की जा सके।
Author: Sweta Sharma
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