जुलाई 2018 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोकसभा में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के संशोधन पर चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि कई सरकारी स्कूल मिड डे मील स्कूल बन गए हैं, क्योंकि उनमें शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया गायब हो गई है।
अब केंद्र सरकार ने पांचवीं और आठवीं कक्षा के लिए नो डिटेंशन पॉलिसी को हटा दिया है। इसका मतलब है कि इन कक्षाओं में छात्रों को फेल किया जा सकता है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सचिव संजय कुमार ने बताया कि यह निर्णय बच्चों के सीखने के परिणामों में सुधार के उद्देश्य से लिया गया है।
नए नियमों का प्रभाव
राज्यों को अब यह अधिकार है कि वे अपने यहां पांचवीं और आठवीं के छात्रों के लिए वार्षिक परीक्षाएं आयोजित करें। अगर छात्र फेल होते हैं, तो उन्हें पुनः परीक्षा का मौका दिया जाएगा। लेकिन अगर वे दोबारा असफल होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
राज्यों की प्रतिक्रियाएं
तमिलनाडु सरकार ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि वह अपने राज्य में नो डिटेंशन पॉलिसी जारी रखेगी। वहीं, 15 से अधिक राज्य पहले ही इस पॉलिसी को हटा चुके हैं, जबकि उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्य अभी भी इसे लागू किए हुए हैं।
नो डिटेंशन पॉलिसी का उद्देश्य
नो डिटेंशन पॉलिसी 2010 में केंद्र की मनमोहन सरकार द्वारा लागू की गई थी। इसका उद्देश्य स्कूल ड्रॉपआउट को कम करना, शिक्षा को आनंददायक बनाना और परीक्षा में फेल होने के डर को समाप्त करना था। इसके तहत छात्रों का मूल्यांकन सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) प्रणाली से किया जाता था।
क्या बदलेंगे नए नियम?
नए नियमों में यह प्रावधान है कि बच्चों को निष्कासित नहीं किया जाएगा। स्कूल प्रमुख पिछड़े छात्रों की सूची बनाएंगे और उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे। साथ ही, क्लास टीचर और माता-पिता को छात्रों की प्रगति में शामिल किया जाएगा।
सरकार का कहना है कि यह कदम छात्रों की गुणवत्ता और शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए उठाया गया है।

Author: Sweta Sharma
I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.