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क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर रखा जाए या नहीं यह राज्य सरकारें तय करें : कोर्ट

नई दिल्ली। भारत में एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का हाल में दिया गया फैसला महत्वपूर्ण है। अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ग के क्रीमीलेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर करने की सिफारिश की थी, ताकि आरक्षण का फायदा वास्तव में उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। इस फैसले को लागू करने की जिम्मेदारी अब राज्य सरकारों पर डाल दी गई है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यह फैसला विधायिका और कार्यपालिका का कार्य है, अर्थात् संसद और राज्य सरकारों को यह तय करना होगा कि क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर रखा जाए या नहीं।

मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें उसने राज्य सरकार को आदेश देने का अनुरोध किया था कि वह सरकारी भर्तियों में क्रीमीलेयर को आरक्षण लाभ से बाहर करे। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से मांग की थी कि सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में एससी-एसटी वर्ग के क्रीमीलेयर को आरक्षण लाभ से वंचित किया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर जो विचार व्यक्त किए गए थे, वे केवल सुझाव थे, और इसे लागू करने का काम राज्य सरकारों का है। कोर्ट ने कहा कि यदि क्रीमीलेयर को आरक्षण से बाहर किया जाता है तो यह फैसला नीति निर्धारक निकायों द्वारा किया जाएगा, क्योंकि यह एक नीतिगत मुद्दा है।

इस मामले में अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया था कि कोर्ट को इस प्रकार के नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसके अलावा जब याचिकाकर्ता ने यह तर्क रखा कि नीति निर्धारक खुद क्रीमीलेयर मानदंड के कारण आरक्षण से वंचित हो जाएंगे, तो कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि यह विधायिका का काम है।

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले अगस्त 2024 में एक ऐतिहासिक आदेश दिया था, जिसमें उसने एससी-एसटी वर्ग में क्रीमीलेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण से बाहर करने के लिए एक तंत्र तैयार करने की जरुरत जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी क्रीमीलेयर का सिद्धांत एससी-एसटी पर लागू नहीं हो सकता और इसके लिए एक अलग तंत्र होना चाहिए। यह फैसला उन लोगों के हित में था जिन्होंने आरक्षण का लाभ लिया और समाज में उच्च पदों तक पहुंचे।

इस आदेश के बाद कई दलित समुदाय के प्रभावशाली वर्गों ने इसका विरोध किया था, उनका कहना था कि इससे एससी-एसटी समुदाय की एकता को खतरा हो सकता है। इस मुद्दे पर समाज में विभाजन के डर को लेकर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

हालांकि कोर्ट का मानना है कि जिन लोगों ने जीवन में उच्च पदों पर पहुंचने के बाद आरक्षण का लाभ लिया है, उन्हें अब सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा नहीं माना जा सकता और उन्हें आरक्षण का लाभ जारी रखने की भी जरुरत नहीं है।

Admin Desk
Author: Admin Desk

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