संजय मिश्र की खास रिपोर्ट
आइए, आपको ले चलते हैं देवरिया और कुशीनगर से सटे बिहार राज्य के गोपालगंज जिले में, जहां स्थित है एक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर-हथुआ का गोपाल मंदिर। इस मंदिर का दृश्य और भव्यता दर्शनीय है, और यह न केवल स्थानीय निवासियों के लिए बल्कि बिहार के अन्य जिलों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
गोपालगंज जिले के मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हथुआ बाजार के बीचों-बीच, यह मंदिर 165 साल पुराना है। इसकी नींव रखने का श्रेय जाता है स्व. महाराजा बहादुर राजेंद्र प्रताप शाही की पत्नी, महारानी श्याम सुंदरी को, जिन्होंने वर्ष 1850 में इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर का निर्माण उन्होंने स्त्री धन से कराया था। महारानी श्याम सुंदरी मंदिर के पास बनी कोठी में रहती थीं, और इस मंदिर का निर्माण उनके द्वारा समर्पित एक अद्वितीय प्रयास था।

मंदिर का विशालता और सौंदर्य
यह मंदिर कुल 13 बीघा 3 कट्ठा 14 धुर में फैला हुआ है, और इसकी भव्यता व वास्तुकला का कोई सानी नहीं है। मंदिर के चारों ओर हरियाली से भरे फूल-पौधे लगाए गए हैं, जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। मंदिर के सौंदर्य में इटली से मंगवाए गए मार्बल और बेल्जियम से लाए गए शीशे का भी अहम योगदान है। इन सजावटी सामग्रियों ने मंदिर को एक अद्वितीय सौंदर्य प्रदान किया है, जो आज भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
मंदिर की देखभाल और प्रबंधन
मंदिर की देखभाल के लिए हथुआ राज की ओर से 14 से 15 लोगों की एक टीम नियुक्त की गई है। इन कर्मचारियों का काम मंदिर की सफाई, सजावट और पूजा-अर्चना की प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है। मुख्य पुजारी आशुतोष तिवारी के अनुसार, यह मंदिर अपनी समृद्धि और ऐतिहासिक महत्व को बनाए रखने में पूरी तरह से समर्पित है।
मंदिर की निर्माण लागत
हथुआ का गोपाल मंदिर उस समय की वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण करने में कुल चार लाख पचास हजार चांदी के सिक्के खर्च हुए थे। यदि इसे आज के समय में आंका जाए तो यह राशि 53 से 54 करोड़ के बराबर होती है। इस मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री और वास्तुकला की गुणवत्ता को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यह महल नुमा मंदिर अपनी विशालता और भव्यता में अनोखा है।

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हथुआ का गोपाल मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी एक अद्वितीय पहचान रखता है। यहां आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक इस मंदिर की ऐतिहासिक विरासत, स्थापत्य कला और शांति का अनुभव करते हैं। हर साल यहां विशेष अवसरों और त्योहारों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और इस मंदिर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हथुआ का गोपाल मंदिर आज भी स्थानीय और बाहरी पर्यटकों के लिए एक श्रद्धा स्थल और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में खड़ा है। यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी महत्व रखता है, जो आज भी अपनी शांति और भव्यता से सभी को आकर्षित करता है।





