बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण और हिंदुत्व की विचारधारा के बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए 2025 का विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती बनने वाला है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ बीजेपी का गठबंधन एक सुविधा की राजनीति का उदाहरण है, जहां विचारधारा से अधिक सत्ता समीकरण महत्वपूर्ण हैं।
बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति को मजबूती से आगे बढ़ा रही है, लेकिन बिहार में अकेले दम पर सत्ता में वापसी करना उसके लिए मुश्किल हो सकता है। नीतीश कुमार की जेडीयू (JDU) के साथ गठबंधन बिहार की सामाजिक संरचना को देखते हुए बीजेपी के लिए अनिवार्य हो गया है। बीजेपी की पारंपरिक राजनीति हिंदुत्व के इर्द-गिर्द घूमती है, जबकि बिहार की राजनीति जातिगत समीकरणों पर निर्भर है। ऐसे में जेडीयू के साथ रहना उसकी रणनीतिक मजबूरी बन गई है। 2025 के चुनावों में बिहार में पीढ़ीगत बदलाव देखने को मिल सकता है।
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) और अन्य युवा नेता अपनी जगह बना रहे हैं, जिससे पारंपरिक राजनीति को चुनौती मिल सकती है। साथ ही, अगर बीजेपी और जेडीयू के बीच तालमेल ठीक से नहीं बैठा तो खंडित जनादेश की संभावना भी बढ़ सकती है। बिहार में बीजेपी को हिंदुत्व को संतुलित रखते हुए जातिगत समीकरण साधने होंगे। अगर वह सिर्फ हिंदुत्व पर ध्यान देगी तो नीतीश का कुर्मी और अति-पिछड़ा वोट बैंक उसके लिए चुनौती बन सकता है। ऐसे में बीजेपी के लिए 2025 का चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन का भी बड़ा इम्तिहान होगा।
Author: Sweta Sharma
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