नई दिल्ली – मुंबई हमले के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है। अमेरिका की जेल में लंबे समय से बंद रहे राणा को भारत लाने की राह आसान नहीं थी। लेकिन भारतीय एजेंसियों की सटीक रणनीति और मजबूत कूटनीति ने इस असंभव को संभव कर दिखाया। राणा ने अपने प्रत्यर्पण को रोकने के लिए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें उसने दोहरे खतरे के सिद्धांत (Double Jeopardy) का हवाला देते हुए कहा कि उसे एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती। उसका दावा था कि वह पहले ही अमेरिका में सजा काट चुका है। लेकिन भारत की ओर से पेश हुई कानूनी टीम ने इस तर्क को ठोस कानूनी दलीलों से ध्वस्त कर दिया।
दूसरा अहम कारण है भारत की वैश्विक स्तर पर बढ़ती कूटनीतिक ताकत। अमेरिका के साथ मजबूत होते संबंधों और भारत की वैश्विक साख ने इस प्रत्यर्पण को संभव बनाया। ट्रंप सरकार से लेकर बाइडन प्रशासन तक, दोनों ने इस प्रत्यर्पण पर सहमति जताई थी। यह दर्शाता है कि भारत अब केवल एक विकासशील देश नहीं, बल्कि वैश्विक निर्णयों को प्रभावित करने वाली ताकत बन चुका है। तहव्वुर राणा, जो पाकिस्तान-कनाडा की नागरिकता रखता है और पाकिस्तानी सेना में भी सेवा दे चुका है, को लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करने और 26/11 मुंबई हमले की साजिश में दोषी पाया गया था। अब उसे भारत में न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। सुनवाई में एनआईए की ओर से विशेष लोक अभियोजक नरेंद्र मान पेश होंगे।

Author: Sweta Sharma
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