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संसद में पीएम प्रश्नकाल और 100 दिन सत्र चलाने की मांग, नई किताब में सुधारों के अहम सुझाव

संसद की कार्यप्रणाली को अधिक उत्तरदायी और जन-केंद्रित बनाने को लेकर एक नई किताब ने गंभीर विमर्श छेड़ दिया है। इस किताब में संसद में प्रधानमंत्री प्रश्नकाल शुरू करने का सुझाव दिया गया है, ताकि देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मंच पर सीधे प्रधानमंत्री से जवाबदेही तय की जा सके। किताब में कहा गया है कि मौजूदा समय में संसद की कार्यवाही में नेताओं की बार-बार की बयानबाजी और टकराव के कारण मूल मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। आम जनता की समस्याओं, उनकी आकांक्षाओं और विकास से जुड़े विषयों पर फोकस कम हो गया है। ऐसे में जरूरी है कि संसद के प्रारूप में व्यापक बदलाव और नवाचार किए जाएं।

एक और बड़ा सुझाव यह है कि साल में संसद की कार्यवाही कम से कम 100 दिन तक अनिवार्य रूप से चले। अक्सर देखा गया है कि संसद के सत्र कम दिन चलते हैं और कई बार बाधित हो जाते हैं, जिससे नीतिगत चर्चाएं अधूरी रह जाती हैं। यदि संसद वर्ष भर में 100 दिन चले, तो जनहित से जुड़े विधेयकों और नीतियों पर गंभीर चर्चा का समय बढ़ेगा। यह किताब एक रचनात्मक पहल है जो लोकतंत्र को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने की दिशा में रास्ता दिखाती है। इसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्यों से अपेक्षा की गई है कि वे संसदीय परंपराओं को मजबूत करें और बहस को अर्थपूर्ण बनाएं।

किताब में यह भी कहा गया है कि संसद केवल राजनीतिक युद्ध का मैदान न रहे, बल्कि जनहित में ठोस नीतिगत विमर्श का मंच बने।

Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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