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तांत्रिक परंपराओं और शक्ति उपासना का महोत्सव

गुवाहाटी, असम — देश के प्रमुख शक्तिपीठों में शामिल कामाख्या देवी मंदिर में आज यानी 22 जून से अंबुबाची मेला का शुभारंभ हो गया है। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि तांत्रिक साधना और लोक मान्यताओं के लिहाज़ से भी अत्यंत विशेष माना जाता है। अंबुबाची मेला हर वर्ष जून के महीने में आयोजित किया जाता है और यह देवी कामाख्या के मासिक धर्म चक्र का प्रतीकात्मक उत्सव है। तीन दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इन दिनों देवी रजस्वला होती हैं। इसे एक प्राकृतिक प्रक्रिया और शक्ति की उपासना के रूप में देखा जाता है।

22 से 25 जून तक मंदिर में किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना या दर्शन की अनुमति नहीं होती। इस दौरान मंदिर परिसर में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान और साधनाएं होती हैं। 26 जून को मंदिर के ‘शुद्धिकरण’ के बाद कपाट पुनः भक्तों के लिए खोले जाएंगे। कामाख्या मंदिर को 51 शक्तिपीठों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। कहा जाता है कि यहां देवी सती की योनि गिरी थी, जिस कारण यह स्थान स्त्री शक्ति और सृजन की सबसे पवित्र भूमि मानी जाती है। यही कारण है कि अंबुबाची मेला एक स्त्री के जीवन के प्राकृतिक चक्र को सम्मान देने का प्रतीक भी बन गया है।

इस मेले में देशभर से तांत्रिक, साधक, और श्रद्धालु भारी संख्या में भाग लेते हैं। खासकर बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, और नेपाल से आए साधक मंदिर के आस-पास साधना करते हैं। यह मेला आस्था और अध्यात्म का ऐसा संगम बन गया है, जो पौराणिक परंपराओं को आज के समाज में जीवंत बनाए रखता है। अंबुबाची मेला नारीत्व की शक्ति, प्रकृति और सृजन के उत्सव का प्रतीक है, जो हिंदू धर्म की तांत्रिक धारा में विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष प्रशासन ने सुरक्षा और स्वच्छता के विशेष इंतज़ाम किए हैं ताकि लाखों श्रद्धालु बिना किसी अवरोध के अपनी साधना और भक्ति पूरी कर सकें।

Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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