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शिक्षा से संवर रहा भारतीय मुस्लिम समुदाय का भविष्य

शैक्षिक सफलता को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं मुस्लिम छात्र

भारत में मुस्लिम समुदाय में शिक्षा का एक लंबा और समृद्ध इतिहास रहा है जो मध्यकाल से शुरू होता है। उसी कालखण्ड में यहाँ मदरसे और इस्लामी शिक्षा के वि‌द्यालय जैसे औपचारिक शिक्षण संस्थान स्थापित करने का काम मुस्लिम समुदाय ने शुरू किया लेकिन ब्रिटिश औपनिवेशिक कालखण्ड के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय शिक्षा से दूर होता चला गया। इस कालखण्ड में मुस्लिम शिक्षा को संसाधनों की कमी और औपचारिक शिक्षा तक सीमित पहुँच जैसी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और आजादी के बाद, स्थिति बद से बदतर हो गई, लेकिन अब परिस्थियाँ तेजी से बदल रही है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में हम मुस्लिम समुदाय में शिक्षा के प्रति बढ़ते रुझान को देख रहे हैं। भारत में मुस्लिम छात्र अब शैक्षिक सफलता की नई इबारत लिख रहे हैं। विशेषकर पेशेवर क्षेत्रों- यूजी नीट, जेईई, नेट, यूपीएससी में उनकी सफलता उल्लेखनीय है। मुस्लिम छात्र शैक्षणिक और प्रतियोगी परीक्षाओं में आने वाली बाधाओं को तोड़कर नए मानदंड स्थापित कर रहे हैं।

आज मदरसे और महानगरीय कोचिंग सेंटर्स, दोनों से ही स्थानों से मुस्लिम समुदाय के असाधारण छात्र-छात्राएं उभर रहे हैं, जो लंबे समय से चली आ रही रुढ़िवादी मानसिकता के सामने दीवार बनकर उनको चुनौती दे रहे हैं। इन छात्र-छात्राओं की सफलता उनकी व्यक्तिगत कड़ी मेहनत और समर्पण, सामुदायिक समर्थन और सामाजिक पूर्वाग्रहों को चुनौती देने के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। गौरतलब है कि अब बड़े शहरों के अलावा, राष्ट्रीय संगठन भी छोटे शहरों में मुफ्त कोचिंग और करियर काउंसलिंग के माध्यम से मुस्लिम छात्र-छात्राओं के लिए सकारात्मक सोच विकसित कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, वे यूजी नीट जैसी प्रमुख परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं। हाल ही में आए 2025 यूजी नीट के परिणामों को देखें तो मुस्लिम छात्र एक प्रभावशाली उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। असम के गुवाहाटी के मूसा कलीम ने 99.97 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। राज्य के 42,000 से अधिक आवेदकों में मूसा कलीम सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्र थे। 2024 की नीट परीक्षा में 20.8 लाख से अधिक छात्र शामिल हुए, जिनमें से लगभग 11.5 लाख उत्तीर्ण हुए। इन परिणामों से पता चलता है कि हर पृष्ठभूमि का छात्र, जिनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम भी शामिल हैं, उच्च स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

मुंबई के एक पिछड़े परिवार से ताल्लुक रखने वाली उर्दू माध्यम की छात्रा अमीना आरिफ कादीवाला ने नौट यूजी 2024 में शानदार अंक प्राप्त किए। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के 17 वर्षीय माजिद मुजाहिद हुसैन ने JEE एडवांस्ड 2025 में 360 में से 330 अंक लाकर अखिल भारतीय स्तर पर तीसरा स्थान प्राप्त करके अपने जिले का नाम रोशन किया तो वहीं अंबेडकरनगर, उत्तर प्रदेश की रशीदा खातून ने 2022 के UPSC फाइनल रिजल्ट में 354वीं रैंक हासिल की। इसी तरह, उत्तर प्रदेश की सुल्ताना परवीन ने UPPCS 2022 में छठी रैंक हासिल करके इस मिथक को तोड़ दिया कि मुस्लिम समुदाय की लड़कियों शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ रही हैं।

अमीना, रशीदा खातून और सुल्ताना परवीन की सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाषाई या सामाजिक परिवेश सफलता में बाधक नहीं है। महाराष्ट्र एचएससी परीक्षा में अरीबा उमर हंगोरा और मोमिन मोअज ने शानदार प्रदर्शन किया और साबित कर दिया कि धार्मिक शिक्षा और आधुनिक शिक्षा साथ-साथ चल सकती है। इतना ही नहीं, आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। आज, मदरसों से पढ़े बड़ी संख्या में छात्र यूजी नीट में सफलता की कहानी दोहरा रहे हैं। ऐसी एक लंबी सूची है जो दर्शाती है कि मुस्लिम छात्रों की यह सफलता कतई संयोग नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय की कड़ी मेहनत और प्रोत्साहन का सकारात्मक परिणाम है। ये कहानियाँ इस चुनौती को गलत साबित करती हैं कि धार्मिक शिक्षा आधुनिक और आधुनिक शिक्षा के साथ संघर्ष में है। भारत की पहली मुस्लिम महिला न्यूरोसर्जन मरियम अफीफा अंसारी जैसी महिलाएँ अन्य महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं। उत्तर प्रदेश के सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य युगल किशोर मिश्रा ने अपने शोध में कहा है कि पिछले तीन वर्षों में मुस्लिम प्रवेश में 30% की उल्लेखनीय वृ‌द्धि हुई है। यह शोध साबित करता है कि मुस्लिम समुदाय में शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता एक व्यापक प्रवृत्ति का संकेत देती है।

प्रयागराज के ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के छात्रों, मोहम्मद अफसर और मोहम्मद साहबान ने हाल ही में गुवाहाटी में हुए ‘खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हैमर थ्रो में स्वर्ण पदक जीता। विद्या भारती (पूर्वी उत्तर प्रदेश) के अतिरिक्त सचिव चिंतामणि सिंह के अनुसार, ‘उत्तर प्रदेश में हमारे संस्थानों में लगभग 12,000 मुस्लिम छात्र नामांकित हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1,194 स्कूल हैं जिनमें 9,037 मुस्लिम छात्र नामांकित है, बाकी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं।

पूर्वोत्तर भारत में, मूसा कलीम जैसे सफल व्यक्ति स्थानीय समुदाय के लिए एक आदर्श बन गए हैं। वे शिक्षकों और नीति-निर्माताओं को अधिक समावेशी शिक्षा का वातावरण बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यद्यपि थोडी असमानता दिखती है, इसके बावजूद, 2022 के यूपीएससी परीक्षा परिणाम में सफल उम्मीदवारों में मुस्लिम समाज की कुल संख्या केवल 2.9% थी। नीट और बोर्ड परीक्षाओं में टॉपर्स की बढ़ती संख्या ये संकेत देती है कि धरातल पर प्रगति हो रही है। निरंतर कोचिंग और छात्रवृत्ति जैसी पहले, एक आशाजनक प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति है। भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है जहाँ वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए सशक्त बनाया जा रहा है।

अमीना, मूसा, रशीदा खातून, सुल्ताना परवीन, माजिद मुजाहिद हुसैन, मुबाशरा जैसे अन्य छात्रों की सफलता को अलग-थलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। ये सभी सकारात्मक परिवर्तन, मार्गदर्शन, वित्तीय सहायता, सामूहिक प्रयासों, लचीलेपन और अथक महत्वाकांक्षा पर आधारित एक नए शैक्षिक पारिस्थितिकी प्रणाली का निर्माण कर रहे हैं। भारत में मुस्लिम छात्र न केवल शैक्षणिक सफलता को नया मुकाम दे रहे हैं, बल्कि उसकी नई कल्पना भी कर रहे हैं। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मुस्लिम समुदाय, खासकर मुस्लिम लड़कियों में शिक्षा के प्रति जागरुकता बढ़ी है, जो सभी बाधाओं को पार कर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। मुस्लिम छात्रों में पढ़ाई छोड़ने की दर ज्यादा है क्योंकि उन्हें आर्थिक तंगी, सामाजिक बाधाओं और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, इसके बावजूद एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। अगर केंद्र और राज्य की सरकार मिलकर इस समस्या पर ध्यान दें, तो जल्द ही बेहद सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे।

सफल छात्रों का सफर यह साबित करता है कि जब अवसर और दृढ़ संकल्प का मेल होता है, तो सिद्धांत किसी भी कोने से उभरकर सामने आ सकते हैं। ये छात्र हमें दिखाते हैं कि एक विविध और लोकतांत्रिक भारत का भविष्य हर बच्चे की क्षमता को उजागर करने में निहित है, चाहे उसका सामाजिक वर्ग कुछ भी हो।

मुस्लिम छात्रों की बढ़ती शैक्षणिक सफलता इस बात का प्रमाण है कि भारत के शैक्षणिक संस्थान इन महत्वाकांक्षी छात्रों का समर्थन कर रहे हैं। जो सरकारी योजनाएँ, छात्रवृत्तियाँ और आरक्षण नीतियाँ विशेषाधिकार प्राप्त समुदायों के लाभ के लिए बनाई गई हैं वो कहीं न कहीं उनको लाभ पहुँचा रही है, यद्यपिमुस्लिम छात्रओं को मुख्यधारा में आने के लिए अन्य समुदायों की तुलना में अधिक मेहनत करनी होगी। पूर्व प्रोफेसर अरुण सी. मेहता ने भारत में मुस्लिम शिक्षा की स्थिति’ शीर्षक से एक अध्ययन प्रकाशित किया, जिसके अनुसार दक्षिणी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मुस्लिम शिक्षा उत्तरी राज्यों की तुलना में बेहतर थी। 18 से 23 वर्ष की आयु के मुस्लिम छात्रों का सकल राष्ट्रीय नामांकन अनुपात (जीईआर) 8.41% था। इसमें महिलाओं का प्रदर्शन बेहतर रहा, जिनका जीईआर 9.43% रहा, जबकि पुरुषों का 8.44% रहा। मुस्लिम छात्रों का जीईआर आम तौर पर दक्षिण भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना और केंद्र शासित प्रदेशों में अधिक रहा।

दक्षिण भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, 2016-17 में 17,39,218 मुस्लिम छात्र उच्च शिक्षा में नामांकित थे, जो 2019-20 में बढ़कर 21,00,860 हो गए। हालांकि, अगले वर्ष इसमें 8.53 प्रतिशत की गिरावट देखी गई और उच्च शिक्षा में नामांकित मुस्लिम छात्रों की संख्या घटकर 19,21,713 रह गई। यानी 1,79,147 छात्रों की कमी आई। वहीं अगर हिंदी प‌ट्टी के राज्यों की बात करें, जिनमें कम से कम नौ राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं; उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली। एक अध्ययन के अनुसार, इन सभी स्कूलों में लगभग 7 प्रतिशत मुस्लिम छात्र उच्च शिक्षा के लिए पंजीकृत हैं, जो समग्र राष्ट्रीय नामांकन अनुपात से कम और दक्षिणी राज्यों से 12 प्रतिशत कम है। इनमें से, झारखंड में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले मुस्लिम छात्रों का अनुपात सबसे अधिक है। महाराष्ट्र में यह दर 15% और उत्तराखंड में 12.48% है। ये दो ही राज्य है जहाँ ये ऑकड़े दोहरे अंकों में हैं। राजधानी दिल्ली तीसरे स्थान पर है और हरियाणा सबसे निचले पायदान पर है, जहाँ यह दर 4.49% है। यह रिपोर्ट भले ही परेशान करने वाली हो, लेकिन अब मुस्लिम समुदाय की तस्वीर तेजी से बदल रही है।

साल 2016 से 2021 के बीच, केंद्र सरकार ने मुस्लिम छात्रों को 2.3 करोड़ रुपये से अधिक की छात्रवृत्तियों प्रदान की, जो 9,904 करोड़ रुपये के बराबर है। उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व केवल 4.6% है। अगर ओबीसी और एससी छात्रों की बात करें, तो मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व काफी कम है, जो चिंतन का विषय है। इसके बावजूद, उच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या, संसाधनों की प्रचुरता और रुढ़िवादिता को चुनौती देने का प्रयास मुस्लिम समुदाय की सफलता को नई परिभाषा देती है। सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और धार्मिक संगठनों के संयुक्त प्रयासों से शिक्षा तक पहुँच में सुधार हो रहा है। सफल मुस्लिम छात्र अल्पसंख्यक समुदायों में सकारात्मक बदलाव को दर्शाते हैं। छात्र अब दृढ संकल्प और सहयोग से भाषा, धर्म और अर्थशास्त्र की सीमाओं को पार करते हुए सफलता के शिखर पर पहुँच रहे हैं।
लेखक:- मोहित मौर्या

Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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