टीनिया वर्सीकोलर एक सामान्य त्वचा संबंधी फंगल संक्रमण है, जिसमें त्वचा पर हल्के या गहरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं। यह समस्या अधिकतर किशोरों और युवाओं में पाई जाती है और आमतौर पर छाती, पीठ और कंधों पर उभरती है। हालांकि यह संक्रमण संक्रामक नहीं होता, लेकिन यह त्वचा की सुंदरता और आत्मविश्वास पर असर डाल सकता है।
आधुनिक चिकित्सा में इसका उपचार एंटीफंगल क्रीम, लोशन या दवाओं से किया जाता है, लेकिन यह संक्रमण कई बार बार-बार लौट आता है, विशेषकर गर्म और आर्द्र वातावरण में।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद के अनुसार, टीनिया वर्सीकोलर का कारण शरीर में कफ और वात दोष का असंतुलन है। कफ दोष भारी, ठंडा और चिपचिपा होता है, जबकि वात दोष शुष्क, ठंडा और गतिशील स्वभाव का होता है। जब ये दोनों दोष असंतुलित होते हैं, तो त्वचा में विषाक्त पदार्थ (आम) जमा होने लगते हैं, जिससे त्वचा की परतों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
आयुर्वेद न केवल इस रोग के लक्षणों का बल्कि इसके मूल कारण का भी उपचार करने पर जोर देता है। इसके लिए घरेलू नुस्खे, सही आहार और जीवनशैली में बदलाव का महत्व है।
प्राकृतिक और घरेलू उपचार
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नीम: नीम में शक्तिशाली एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। नीम के पत्तों का पेस्ट बनाकर प्रभावित हिस्सों पर लगाएं, या उबले हुए नीम के पानी से धोएं।
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एलोवेरा: ताज़ा एलोवेरा जेल संक्रमण को शांत करता है और खुजली कम करता है। इसे हल्के हाथों से प्रभावित त्वचा पर लगाएं।
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हल्दी: हल्दी पाउडर को कच्चे दूध के साथ मिलाकर पेस्ट बनाएं और धब्बों पर लगाएं। यह सूजन और पिगमेंटेशन कम करने में मदद करता है।
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नारियल तेल और कपूर: दोनों को मिलाकर त्वचा पर हल्के से लगाएं। यह फंगस की वृद्धि को रोकने में सहायक है।
यदि घरेलू उपचार के बावजूद लक्षण कम नहीं होते, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेना ज़रूरी है, ताकि सही निदान और उचित इलाज मिल सके।
Author: Sweta Sharma
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