हृदयनारायण दीक्षित
निश्चय टाइम्स, लखनऊ। भाषा विज्ञानी अलब्राइट व लैम्बिडन ने सुमेरी को प्राचीनतम लिखित भाषा बताया। इनके मुताबिक पश्चिम को सुमेरी ने प्रभावित किया। उन्होंने बताया अंग्रेजी ‘ऐबिस‘ सुमेरी का अब्ज (पृथ्वी के नीचे का जल) है। यूनानी में वह अबुस्सास है। बेबीलोन में इसे अप्सु कहते हैं। लेकिन ऋग्वेद (1.23.19, 9.43.9 और 9.30.5 आदि) में अप और अप्सु शब्द भरे पड़े हैं। मिस्री, सुमेरी और संस्कृत में भूतल जल पर एक शब्दावली है। विलियम जोन्स ने कहा कि, ‘‘संस्कृत ग्रीक से अधिक निर्दोष, लैटिन से अधिक समृद्ध और इनमें किसी से भी अधिक उत्कृष्ट है। इसके बावजूद धातुओं और व्याकरणिक रूपों में यह इन दोनों से प्रगाढ़ सम्बंध रखती है, इतना प्रगाढ़ कि कोई भाषाविद इनका एक ही स्रोत माने बिना छानबीन नहीं कर सकता।‘‘ संस्कृत जाने बिना विश्व भाषा विज्ञान, विश्व भाषा परिवार, सृष्टि संरचना और विश्व सांस्कृतिक सम्बंधों का अध्ययन कैसे हो?
सभ्यता, संस्कृति, दर्शन, भौतिकी और आधुनिक ज्ञान विज्ञान का आदि केन्द्र भारत है, इन सबकी आदि भाषा है संस्कृत। यूरोपीय विद्वान एच. एस. मेन ने लिखा था, ‘‘बीजगणित, अंकगणित में पश्चिमी सहायता के बिना ही ऊंचे दर्जे की दक्षता है। दशमलव प्रणाली के अविष्कार का हम पर ऋण है। अरबों ने अंक हिन्दुओं से पाए, यूरोप में फैलाए। अरब चिकित्सा पद्धति संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद है, यूरोपीय चिकित्सा पद्धति 17वीं सदी तक अरबी चिकित्सा थी।‘‘ विलियम हंटर ने लिखा था कि, ‘‘पश्चिम के विद्वान जब भाषा विज्ञान का विवेचन आकस्मिक समानताओं के आधार पर कर रहे थे, उस समय भारत में व्याकरण को मूल सिद्धांतों का रूप मिल चुका था। पाणिनि का व्याकरण संसार में सर्वोच्च है।‘‘ मैक्समूलर ने लिखा, ‘‘भारत के मानवी-मस्तिष्क ने कुछ सर्वोत्तम गुणों का पूर्ण विकास किया है। जीवन की बड़ी से बड़ी समस्याओं पर भारत द्वारा प्राप्त हल प्लेटो और कांट के दर्शन का अध्ययन किए हुए लोगों के लिए (भी) विचार करने योग्य है। यूनानी, रोमन और एक सेमेटिक जाति यहूदी के विचारों मात्र पर पालित पोषित यूरोप के हम लोग जीवन को अधिक परिपक्व, अधिक व्यापक, अधिक सार्वलौकिक दरअसल सच्चे मानवीय बनाने के लिए भारत की ओर ही देखते हैं।‘‘
गांधी ने लिखा, ‘‘पृथ्वी पर हिंदुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां मां-बाप अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी पढ़ाना लिखाना पसंद करेंगे।” अंग्रेजी को विश्व भाषा बताया जाता है लेकिन जापान, रूस और चीन आदि अनेक देशों में अंग्रेजी की कोई हैसियत नहीं है। भारत की संविधान सभा (14 सितंबर 1949) ने हिंदी को राजभाषा बनाया, 15 वर्ष तक अंग्रेजी में राजकाज चलाने का ‘परंतु‘ जोड़ा। पंडित नेहरू ने कहा, ‘‘हमने अंग्रेजी इस कारण स्वीकार की, कि वह विजेता की भाषा थी, अंग्रेजी कितनी ही अच्छी हो किन्तु इसे हम सहन नहीं कर सकते।‘‘ एन. जी. आयंगर ने सभा में हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखते हुए 15 बरस तक अंग्रेजी को जारी रखने का कारण बताया, ‘‘हम अंग्रेजी को एकदम नहीं छोड़ सकते। यद्यपि सरकारी प्रयोजनों के लिए हमने हिंदी को अभिज्ञात किया फिर भी हमें यह मानना चाहिए कि आज वह समुन्नत भाषा नहीं है। सेठ गोविंद दास ने हिंदी की पैरोकारी की, ‘‘इस देश में हजारों वर्ष से एक संस्कृति है। यहां एक भाषा और एक लिपि ही होनी चाहिए।‘‘ आर. वी. धुलेकर ने कहा, ‘‘मैं कहता हूं कि वह राजभाषा है, राष्ट्रभाषा है। हिंदी के राष्ट्रभाषा-राजभाषा हो जाने के बाद संस्कृत विश्व भाषा बनेगी। अंग्रेजी के नाम 15 वर्ष का पट्टा लिखने से राष्ट्र का हित साधन नहीं होगा। (संविधान सभा बहस 13-9-1949) संविधान में तीन दिन तक बहस हुई। संविधान के अनुच्छेद (343-1) में हिंदी राजभाषा बनी। किंतु अनुच्छेद (343-2) में अंग्रेजी जारी रखने का प्रावधान हुआ। हिंदी के लिए आयोग-समिति बनाने की व्यवस्था हुई। हिंदी के विकास की जिम्मेदारी (अनुच्छेद 351) केन्द्र पर डाली गई।
लेकिन कांग्रेस अपने जन्म काल से ही अंग्रेजी को वरीयता देती रही, गांधी जी ने कहा, ‘‘अंग्रेजी ने हिंदुस्तानी राजनीतिज्ञों के मन में घर कर लिया है। मैं इसे अपने देश और मनुष्यत्व के प्रति अपराध मानता हूं।‘‘ (संपूर्ण गांधी वांगमय 29-312) भारतीय संस्कृति, सृजन और संवाद की भाषा हिंदी है। हिंदी के पास प्राचीन संस्कृति और परंपरा की सुदीर्घ विरासत है। हिंदी ने संस्कृत सहित सभी भारतीय भाषाओं बोलिय¨ं से शब्द लिए। सबको अर्थ दिए।
हिंदी दिवस की रस्म अदायगी होती रही है। वह राजभाषा है। लेकिन फारसी, अंग्रेजी की तरह उसे राज्य आश्रय नहीं मिला। फारसी मध्यकाल के बादशाहों ने थोपी थी, अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी लाई। हिंदी का विस्तार राज्य आश्रय से नहीं हुआ। भारत में विश्व के चार भाषा परिवार-भारोपीय, द्रविड़ कौल और कीरत हैं। इन भाषाओं के बोलने वालों के बीच सांस्कृतिक समानताएं थीं-हैं। शिक्षा का माध्यम संस्कृत थी। बाद की सभी भाषाओं-बोलियां में संस्कृत और संस्कृति का प्रदाय था। राष्ट्र का अभ्युदय और आत्मज्ञान इस शिक्षा का लक्ष्य था। दसवीं शताब्दी तक संस्कृत और उसकी प्राकृत भाषा ही शिक्षा, इतिहास, भौतिकी और परा विज्ञान का माध्यम थी। संस्कृत और संस्कृति से विकसित पाली, मगधी, प्राकृत, अपभ्रंश और अंततः हिंदी ने ही भारत को एक सांस्कृतिक क्षेत्र बनाया। अमेरिकी भाषाविद एम. बी एमेन्यू ने भारत को भाषिक क्षेत्र बताया।
अरबी फारसी के विद्वानों ने भारत की भाषाई पहचान के लिए हिंदी शब्द का प्रयोग किया। अमीर खुसरो ने इसे हिंदवी-हिंदूई गाया। हैदराबाद के मुस्लिम शासक कुली कुतुबशाह ने इसे ‘जबाने हिंदी‘ बताया। हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है। वह यमुना के निकुंजों पर गीत गाते बड़ी हुई। अंग्रेजी राज के बाद फारसी की जगह अंग्रेजी आ गई। गांधी जी ने अंग्रेजी का विरोध और हिंदी का समर्थन (1917) करते हुए कहा, ‘‘हिंदी ही हिंदुस्तान के शिक्षित समुदाय की भाषा हो सकती है। अंग्रेजी विदेशी भाषा है। हिंदी 22 करोड़ की भाषा है।‘‘ स्वाधीनता संग्राम में जनप्रबोधन की भाषा हिंदी थी। सत्ता पक्ष की दृष्टि में अंग्रेजी समृद्ध थी और हिंदी गरीबी रेखा की नीचे।
तीन दिन तक चली बहस में हस्तक्षेप करते हुए पंडित नेहरू ने कहा, ‘‘अंग्रेजी कितनी ही अच्छी हो, किंतु इसे हम सहन नहीं कर सकते।‘‘ 14 सितंबर के दिन अंग्रेजी प्रभुत्व के साथ हिंदी राजभाषा बन गई। संविधान ने हिंदी के प्रसार-प्रचार का काम केन्द्र को सौंपा। हिंदी कमजोर सिद्ध हो गई। वर्तमान केन्द्र सरकार ने हिन्दी को समृद्ध करने के लिए काफी काम किए हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में विज्ञान आदि विषयों पर हिन्दी में पुस्तकें लिखें जाने की योजना पर काम जारी है। अनेक गोष्ठियां हुई हैं।
उच्चतम न्यायालय-उच्च न्यायालय और संसद में प्रस्तावित विधेयकों-पारित कानूनों की भाषा अंग्रेजी (अनुच्छेद 348) ही है। हिंदी जानने वालों की संख्या सवा अरब़ से भी ज्यादा है। भारत के बाहर अमेरिका, पाकिस्तान, नेपाल, इंडोनेशिया, इराक, बांग्लादेश, इजराइल, ओमान, इक्वाडोर, फिजी, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, ग्वाटेमाला, म्यांमार, यमन, त्रिनिदाद, सऊदी अरब, पेरू, रूस, कतर आदि देशों में लाखों हिंदी भाषी हैं। हिंदी पंख फैलाकर उड़ी है। देश में सबसे बड़ी प्रसार संख्या वाले अखबार हिंदी के हैं। हिंदी फिल्मों-सीरियलों का व्यापार करोड़ों में है। हिंदी में लिखे गए इतिहास, संस्कृति व दर्शन ग्रंथ विश्व की किसी भी भाषा से उत्कृष्ट हैं। राजनैतिक कारणों से जब कब दक्षिण के राज्यों में हिन्दी का विरोध होने लगता है। प्रत्येक राज्य को अपनी भाषा तय करने का अधिकार है। दुर्भाग्य से ये राज्य अंग्रेजी चलाना चाहते हैं। तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम आदि से हिन्दी की स्पर्धा नहीं है। हिंदी भारत के जन गण मन की प्रीति है।
