-हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच कोई स्पर्धा नहीं है, वे एक दूसरे की पूरक हैं
-हिन्दी सिर्फ बोलचाल और प्रशासन की भाषा नहीं, बल्कि विज्ञान, तकनीक, न्याय और पुलिसिंग की भाषा भी होनी चाहिए
-आज से शुरू हुई ‘सारथी अनुवाद प्रणाली’ में हिन्दी से भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में सरलता से अनुवाद हो सकेगा
-51,000 शब्दों से शुरू हुए ‘हिंदी शब्दसिंधु’ शब्दकोष में अब 7 लाख से अधिक शब्द हैं, 2029 तक यह दुनिया का सबसे बड़ा शब्दकोष होगा
-संस्कृति ने ज्ञान की गंगा दी है, हिंदी और भारतीय भाषाओं ने उस ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाया है
-एक समय जिस हिंदी के भूतकाल बनने की बात की जाती थी, आज हिन्दी और भारतीय भाषाएँ भविष्य की भाषाएँ बन रही हैं
निश्चय टाइम्स, डेस्क। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह हिन्दी दिवस 2025 के अवसर पर आज गुजरात की राजधानी गांधीनगर में आयोजित पांचवे अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल, केन्द्रीय मंत्रीअर्जुन राम मेघवाल और केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री बंडी संजय कुमार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कई प्रकाशनों का लोकार्पण भी किया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि हिन्दी भारतीय भाषाओं की सखी है और हिन्दी व भारतीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्द्वंद नहीं है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण गुजरात है। गुजरात में स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और के एम मुंशी जैसे विद्वानों ने हिन्दी को स्वीकार किया और इसका प्रचार भी किया। उन्होंने कहा कि गुजराती और हिन्दी के सहअस्तित्व से गुजरात दोनों भाषाओं के विकास का एक उत्कृष्ट उदाहरण बना। गुजरात में शिक्षा में हिन्दी का भी स्थान है और इसके कारण देशभर में गुजरात के बच्चों की पहुंच बहुत बढ़ी है। उन्होंने कहा कि कई दूरदर्शी नेताओं ने भारतीय भाषाओं को एक दूसरे के साथ संवाद करना सिखाया और हिन्दी को हर राज्य में बढ़ावा देने का आग्रह किया जिसके परिणामस्वरूप गुजरात का व्यक्ति देशभर में कहीं भी जाकर सुगमता के साथ व्यापार करता है और स्वीकृति भी प्राप्त करता है। पिछले 5 साल से अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन दिल्ली से बाहर देश के अलग अलग हिस्सों में हो रहा है जिससे राजभाषा हिन्दी और देश की अन्य भाषाओं के बीच संवाद बढ़ाने का बहुत अच्छा मौका मिला है। उन्होंने कहा कि पिछले 4 सम्मेलनों का यह अनुभव रहा है कि इससे नई दृष्टि, ऊर्जा और प्रेरणा प्राप्त होती है। हिन्दी सिर्फ बोलचाल और प्रशासन की भाषा नहीं होनी चाहिए बल्कि विज्ञान, तकनीक, न्याय और पुलिस की भाषा भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब सारा कामकाज भारतीय भाषाओं मे होता है तो जनता के साथ संपर्क अपने आप बढ़ जाता है।
अमित शाह ने कहा कि सारथी अनुवाद प्रणाली में हिन्दी से भारत की सभी मान्य भाषाओं में सरलता से अनुवाद करने की व्यवस्था है। सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे अपनी-अपनी भाषा में उन्हें पत्र भेजें और पत्र का उत्तर उनकी भाषा में ही भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि पत्र चाहे किसी भी भाषा में हो, सारथी में उसके अनुवाद की व्यवस्था की गई है। साथ ही हिन्दी में हमारे जवाब के उनकी भाषा में ही अनुवाद की भी व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में सारथी के माध्यम से हम सबका संपर्क स्वभाषा में ही होगा। अमित शाह ने कहा कि शिवाजी महाराज ने स्वराज की लड़ाई में स्वराज, स्वधर्म और स्वभाषा के तीन बिन्दु रखे थे। ये तीनों बिन्दु एक दूसरे और देश के स्वाभिमान से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि जिस देश में बोलचाल की भाषा अपनी न हो वह देश स्वतंत्रता की कामना औऱ स्वाभिमान की अनुभूति नहीं कर सकता। यह तभी संभव है जब हमें अपनी भाषओं पर गर्व हो। उन्होंने कहा कि इसीलिए हमने शब्दसिंधु कोष बनाया है। यह 51 हज़ार शब्दों से शुरू हुआ था और आज 7 लाख शब्दों को पार कर चुका है। अमित शाह ने विश्वास व्यक्त किया कि 2029 तक यह दुनिया की सभी भाषाओं में सबसे बड़ा शब्दकोष बन जाएगा। उन्होंने कहा कि इस शब्दकोष के माध्यम से हमने हिन्दी को लचीली बनाना भी शुरू किया है।श्री शाह ने कहा कि हिन्दी को बोलचाल की भाषा तभी बना सकते हैं जब वह लचीली बने। उन्होंने कहा कि शब्दसिंधु का प्रयोग हिन्दी को बहुपयोगी, लचीली और लोकभोग्य बनाएगा।
अमित शाह ने कहा कि महात्मा गांधी ने गुजराती शब्दकोष की रचना में बहुत बड़ा योगदान दिया था। महात्मा गांधी जानते थे कि जब तक अपनी भाषा मज़बूत नहीं होती तब तक कोई समाज उन्नत मस्तक के साथ विश्व के सामने खड़ा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिव्यांगजनों की सुविधा के लिए बहुत काम किया है। उन्होंने कहा कि दिव्यांगजनों की ताकत का पूरा दोहन करने के लिए विज्ञान और तकनीक का सहारा लेना होगा।आज यहा प्रदर्शित AI-संचालित चश्मा दिव्यांगजनों की बहुत मदद करेगा। उन्होंने कहा कि इस चश्मे की सहायता से पूर्णरूप से दृष्टिबाधित होने के बावजूद दृष्टिबाधित पढ़ सकेंगे। वे जो भी पढ़ेंगे इस AI संचालित चश्मे की सहायता से अपनी ही मातृभाषा में उसे सुन सकेंगे। अमित शाह ने कहा कि आज के दिन ही हमारी संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में चुना था। उन्हौंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रकार से भारतीय भाषाओं को बल दिया है उससे हमारी भारतीय भाषाओं और राजभाषा हिन्दी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। सभी अभिभावक अपने बच्चों के साथ मातृभाषा में बात करें। यह देश के साथ साथ बच्चे के भविष्य के लिए भी बहुत ज़रूरी है। गृह मंत्री ने कहा कि गुजरात में कभी भाषा का द्वंद नहीं रहा और यहाँ हमेशा सभी भाषाओं का सम्मान हुआ है।
अमित शाह ने कहा कि महात्मा गांधी कहते थे कि हिन्दी वह भाषा है जो देश को एक सूत्र में बांध कर रखती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत ने हमें ज्ञान की गंगा दी है और हिन्दी ने उस ज्ञान को हर घर और मातृभाषा ने उसे जन-जन तक पहुंचाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने हमारी स्थानीय भाषाओं को बल देने के लिए तकनीक के माध्यम से बहुत काम किए हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रेरणा से गृह मंत्रालय ने राजभाषा विभाग के अंतर्गत भारतीय भाषा अनुभाग बनाया है। यह अनुभाग हिन्दी ही नहीं बल्कि देश की सभी भारतीय भाषाओं को बल देगा और उन्हें आगे बढ़ाने का काम करेगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में राजभाषा विभाग ने कई कामों को आगे बढ़ाया है। राजभाषा समिति ने विगत चार वर्षों में 3 खंडों को प्रस्तुत किया है और चौथा खंड भी तैयार हो चुका है। उन्होंने कहा कि देश के लगभग 539 नगरों में राजभाषा समिति का गठन हो चुका है। लगभग 3 लाख 28 हज़ार अन्य भाषाओं के सरकारी कर्मियों का हिन्दी में प्रशिक्षण किया गया है। इसके अलावा 40 हज़ार कर्मचारियों को टंकण, 1918 को आशुलिपि और 13 हज़ार कर्मचारियों को अनुवाद के लिए प्रशिक्षण दिया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने JEE, NEET और UGC की परीक्षाएं 12 भाषाओं में शुरू की है जिससे मातृभाषा में पढ़ने वाले बच्चों के इन परीक्षाओं में सफल होने की संभावनाएं बढ़ी हैं। श्री शाह ने कहा कि केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) की परीक्षाएं भी अब 12 भाषाओं में ली जाती हैं। उन्होंने कहा कि 70 के दशक में कहा जाता था कि हिंदी अब भूतकाल बनने जा रही है, लेकिन आज गर्व से यह कह सकते हैं कि राजभाषा और हमारी भारतीय भाषाएं भविष्य की भाषाएं हैं और ये तकनीक, विज्ञान और न्याय की भी भाषाएं बनेंगी।
