बसपा में शामिल होने की अटकलें तेज
लखनऊ, सितम्बर 2025 – समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आज़म खां तकरीबन 23 महीने बाद मंगलवार को जेल से रिहा हो गए। रिहाई के बाद उनका अंदाज हमेशा की तरह परिचित रहा—सफेद कुर्ता-पायजामा, सदरी और काले चश्मे में मीडिया और समर्थकों के सामने आए। हालांकि, उनका बयान और चुप्पी दोनों ही सियासी गलियारों में नई हलचल का कारण बन गए।
बसपा में शामिल होने की अटकलों पर आज़म खां ने स्पष्ट जवाब देने से बचते हुए कहा—“यह तो वही लोग बताएंगे जो ऐसी अटकलें लगा रहे हैं।” इस तटस्थ रुख ने सपा खेमे में बेचैनी बढ़ा दी, जबकि अन्य दलों में उम्मीदें जाग उठीं।
जेल के दिनों का जिक्र
मीडिया से बातचीत में आज़म खां ने शायराना अंदाज में कहा—“पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है।” उन्होंने शिकायत जताई कि जेल में उन्हें न तो किसी से मिलने दिया गया और न ही फोन कॉल का अधिकार मिला। इस बीच, उनकी पत्नी तंजीन फात्मा की बसपा सुप्रीमो मायावती से मुलाकात और अक्तूबर में बसपा की बड़ी रैली की तैयारियों ने कयासों को और हवा दी है। माना जा रहा है कि यदि हालात अनुकूल रहे तो आज़म खां उस मंच से बसपा का दामन थाम सकते हैं।
सपा का पलटवार
सपा नेताओं ने इन अटकलों को खारिज कर दिया है। सांसद रुचि वीरा ने कहा कि “आज़म खां ने सपा को खून-पसीने से सींचा है, किसी अन्य दल में जाने की बातें भाजपा की साजिश हैं।” वहीं, पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन ने कहा कि सभी मुकदमे झूठे हैं और आज़म जल्द बरी होंगे।
अन्य दलों की प्रतिक्रिया
एआईएमआईएम ने आज़म खां की रिहाई को इंसाफ की जीत बताया, लेकिन अखिलेश यादव पर सवाल उठाए। पार्टी के महानगर अध्यक्ष वकी रशीद ने आरोप लगाया कि अखिलेश और भाजपा दोनों ही नहीं चाहते कि आज़म सपा में बराबरी से खड़े हों।
वहीं, प्रदेश के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अनिल कुमार ने कहा कि आज़म खां की रिहाई का प्रदेश की राजनीति या आगामी विधानसभा चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने याद दिलाया कि 2017 में जब आज़म जेल में नहीं थे तब भी सपा हार गई थी।
आगे की राह पर निगाहें
आज़म खां की रिहाई से प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। उनकी चुप्पी और इशारों से यह स्पष्ट है कि अभी वे अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं हैं। अब सबकी नजर उनके अगले कदम पर टिकी है, जो राज्य की सियासत को नया मोड़ दे सकता है।
