अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयात होने वाली ब्रांडेड और पेटेंट दवाओं पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। यह घोषणा गुरुवार को ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “ट्रुथ सोशल” पर की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह टैरिफ तब तक लागू रहेगा, जब तक कि मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां अमेरिका में अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित नहीं कर देतीं। इसका मतलब यह है कि जिन कंपनियों ने अमेरिका में प्लांट लगाना शुरू कर दिया है या पहले से उत्पादन कर रही हैं, वे इस टैरिफ के दायरे से बाहर रहेंगी।
यूरोपीय यूनियन और जापान को मिली राहत
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट हाउस ने बाद में स्पष्ट किया कि इस टैरिफ का दायरा यूरोपीय यूनियन (EU) और जापान पर लागू नहीं होगा। इनके साथ लंबी अवधि के व्यापार समझौतों के चलते यूरोपीय यूनियन पर दवाओं के आयात पर केवल 15 प्रतिशत टैरिफ लगेगा। जापान के साथ भी इसी तरह का रुख अपनाया जाएगा। जापान से आयात होने वाली दवाओं और सेमीकंडक्टर पर सौदे के तहत पहले ही 15 प्रतिशत टैरिफ तय हो चुका है।
ब्रिटेन को क्यों नहीं मिली छूट?
भारत की तरह ब्रिटेन से आयात होने वाली दवाओं पर भी 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। यह ट्रंप की औद्योगिक और व्यापार नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अमेरिका की दवाओं के आयात पर निर्भरता को कम करना चाहते हैं और विदेशी कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन शुरू करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।
मई 2025 में ब्रिटेन और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता हुआ था, जिसमें 10 प्रतिशत के बेसलाइन टैरिफ पर चर्चा हुई थी। लेकिन दवाओं के आयात पर फाइनल रेट अभी तय नहीं हुआ है, इसलिए ब्रिटेन को फिलहाल इस नई नीति में कोई छूट नहीं मिली है।
इसका असर
इस टैरिफ से भारत और ब्रिटेन की फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री को बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है। ब्रिटेन की कंपनियों जैसे एस्ट्राजेनेका और ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन को नुकसान होने की संभावना है, क्योंकि पिछले साल ब्रिटेन ने अमेरिका में लगभग 6 अरब डॉलर के दवाओं का निर्यात किया था। भारत के लिए भी यह कदम निर्यात में भारी कमी का कारण बन सकता है और फार्मा सेक्टर में नई चुनौतियां खड़ी करेगा।
