परमात्मा ने मुझसे कराया…”बोले- मेरा मन नहीं था ऐसा करने का
सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में घटी एक चौंकाने वाली घटना ने देशभर में सुर्खियाँ बटोरी हैं। वकील राकेश किशोर, जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई (CJI Gavai) की ओर जूता फेंका था, ने अब इस घटना को लेकर अपनी सफाई दी है। राकेश ने कहा कि उनकी इस हरकत के पीछे कोई व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं थी, बल्कि यह “ईश्वरीय कृत्य” था, जिसके माध्यम से वे एक “संदेश” देना चाहते थे।
राकेश किशोर ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा कि, “मैंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया, बल्कि यह सब परमात्मा ने मुझसे करवाया। मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था। मैं सिर्फ एक संदेश वहाँ तक पहुँचाना चाहता था।” उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि जिस याचिका की सुनवाई के दौरान विवाद हुआ, वह किसने दायर की थी।
वकील के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश गवई ने सुनवाई के दौरान सनातन धर्म का अपमान किया, जिससे वे बेहद आहत हुए। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश के खजुराहो में भगवान विष्णु की एक सात फीट ऊँची मूर्ति है, जिसका सिर धड़ से अलग है। इस मूर्ति को विदेशी आक्रमणकारियों ने क्षतिग्रस्त किया था। राकेश ने कहा, “मैं खुद उस मूर्ति के पास जाकर रो चुका हूँ। जब मैंने इसे ठीक करने की मांग उठाई, तो CJI ने व्यंग्य में कहा कि तुम ही जाकर मूर्ति से कहो कि वह खुद को ठीक कर ले।”
राकेश किशोर ने आगे कहा कि CJI की यह टिप्पणी उन्हें बेहद असहनीय लगी। उन्होंने बताया कि यह विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। कुछ दिन बाद CJI गवई ने मॉरीशस में दिए एक बयान में कहा कि “देश बुलडोजर से नहीं चल सकता।” इस बयान से भी राकेश नाराज थे। उन्होंने कहा कि बुलडोजर की कार्रवाई सिर्फ उन पर हो रही है जिन्होंने अवैध रूप से ज़मीनों पर कब्जा किया है।
जब उनसे पूछा गया कि बार काउंसिल द्वारा उनका वकालत लाइसेंस रद्द किए जाने पर क्या कहना है, तो राकेश ने कहा, “यह एक तुगलकी फरमान है। एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 35 में साफ लिखा है कि पहले कारण बताओ नोटिस दिया जाना चाहिए और फिर अनुशासन समिति के सामने पेशी होनी चाहिए। मेरे मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। मुझे सीधे सस्पेंड कर दिया गया।”
उन्होंने आगे कहा कि अब सब कुछ परमात्मा पर निर्भर है। “अगर भगवान ने मेरा करियर खत्म करने का सोचा है तो कोई बात नहीं। जो होना है, वही होगा।”
