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झारखंड में ‘ट्रिपल L’ का संकट: आदिवासी परिवारों पर मंडरा रहा संकट

झारखंड में लव जिहाद और लैंड जिहाद जैसे विवादों के बाद अब ‘लेबर जिहाद’ जैसी गंभीर समस्या सामने आई है, जो विशेष रूप से आदिवासी समुदायों को निशाना बना रही है। मजदूर पलायन का यह नया रूप राज्य के भोले-भाले आदिवासियों के लिए एक बड़ा संकट बनता जा रहा है, और इससे उनके परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
लेबर जिहाद के तहत मजदूरों को झारखंड के दूरदराज के इलाकों से जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख जैसे स्थानों पर ले जाया जाता है, जहां वे काम करते हैं, लेकिन बाद में उन्हें न तो उनका मेहनताना मिलता है और न ही वे वापस लौट पाते हैं। इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन न तो सरकार और न ही प्रशासन इस पर ठोस कदम उठा रहा है।
दुमका के तीन परिवारों की पीड़ा: लेबर जिहाद का सबसे बड़ा उदाहरण
झारखंड के दुमका जिले से तीन आदिवासी परिवारों की कहानी ने लेबर जिहाद की भयावहता को उजागर किया है। काठिकुंड थाना क्षेत्र के जंगला गांव से तीन मजदूरों को मुस्लिम ठेकेदार आलम अंसारी काम दिलाने के बहाने जम्मू-कश्मीर लेकर गया, लेकिन वे अब तक घर नहीं लौटे। तीनों परिवार अपने परिजनों की प्रतीक्षा में हैं, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है।
परिवारों की दर्दनाक कहानियां
जंगला गांव के क्रिस्टोफर मुर्मू, जो अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले थे, अब तक लापता हैं। उनके घर में उनकी वृद्ध मां और बेटी सुमी मुर्मू अकेले किसी तरह जिंदगी बिता रही हैं। सुमी बताती हैं कि वर्षों पहले उनके पिता को आलम अंसारी नामक ठेकेदार जम्मू-कश्मीर ले गया था, लेकिन आज तक वे नहीं लौटे।
सरकार और प्रशासन की निष्क्रियता
इस संकट से गुजर रहे आदिवासी परिवारों ने दुमका पुलिस और राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। ‘लेबर जिहाद’ का शिकार हो रहे इन मजदूरों की स्थिति बेहद चिंताजनक है, और इस मुद्दे पर अब तक कोई प्रभावी समाधान नहीं निकल सका है।
मजदूर जिहाद: कैसे अस्तित्व में आया?
झारखंड से बाहर के राज्यों में पलायन करने वाले मजदूरों के साथ शोषण की यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है। मुस्लिम ठेकेदारों के माध्यम से इन मजदूरों को दूरदराज के इलाकों में ले जाया जाता है, जहां उनका शोषण होता है। काम पूरा होने के बाद उन्हें उनके वाजिब पैसे नहीं मिलते और न ही वे वापस लौट पाते हैं।
यह समस्या राज्य के आदिवासी समुदायों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है, और इसे रोकने के लिए प्रशासनिक कार्रवाई की सख्त जरूरत है।
आगे का रास्ता: सरकार की जिम्मेदारी
झारखंड सरकार और प्रशासन को इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि आदिवासी मजदूरों के परिवारों को न्याय मिल सके। साथ ही, राज्य में मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की भी आवश्यकता है।

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Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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