उत्तर प्रदेश के रायबरेली और बिहार के नवादा में हालिया दलित अत्याचार की घटनाओं ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इन घटनाओं के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने इसे भाजपा के खिलाफ बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। वहीं, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो गई हैं।
रायबरेली में दबंगों का आतंक, नवादा में दलितों के घरों में आग
रायबरेली में एक घटना में दबंगों ने एक युवक से जूते चटवाए, जबकि नवादा में दबंगों द्वारा दलितों के 100 से अधिक घरों को जला दिया गया। इन घटनाओं ने न केवल क्षेत्रीय राजनीति को गरमाया, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ा मुद्दा बन गई हैं। बिहार के नवादा में दलित बस्ती पर हुए इस हमले को लेकर विपक्ष ने नीतीश कुमार और एनडीए सरकार पर तीखा हमला बोला है।
अखिलेश और तेजस्वी का बीजेपी पर हमला
रायबरेली की घटना को लेकर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार में दलितों के साथ अत्याचार चरम पर है। उन्होंने आरोप लगाया कि योगी सरकार में दलितों के साथ हो रहे अन्याय को नजरअंदाज किया जा रहा है। उधर, बिहार के नवादा की घटना पर तेजस्वी यादव ने भी पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा, “बिहार में एनडीए सरकार के जंगलराज के तहत दलितों का उत्पीड़न बढ़ता जा रहा है। 100 से अधिक दलित घरों को जला दिया गया और सरकार खामोश है।”
कांग्रेस और मायावती भी हुईं सक्रिय
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने नवादा की घटना पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए इसे “एनडीए सरकार का जंगलराज” करार दिया। उन्होंने कहा, “नवादा में दलितों के घर जलाए जाने की घटना बेहद निंदनीय है, और एनडीए सरकार के तहत गरीबों की सुरक्षा खतरे में है।”
वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “बिहार में दलितों के घर जलाना अति-दुखद और गंभीर घटना है। सरकार को दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और पीड़ितों को पूरी आर्थिक सहायता देकर उन्हें दोबारा बसाने की व्यवस्था करनी चाहिए।”
दलित राजनीति का नया मोड़?
इन घटनाओं के बाद, विपक्षी दल भाजपा और एनडीए सरकार के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी दलित और महादलित वर्गों ने विपक्षी दलों को भारी समर्थन दिया था, और अब एक बार फिर यह वर्ग आगामी चुनावों में बड़ा भूमिका निभा सकता है।
भाजपा जहां हिंदू समाज को एकजुट रखने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्षी दल दलितों के मुद्दे को उठाकर भाजपा की हिंदुत्व राजनीति को चुनौती देने की तैयारी में हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये घटनाएं आगामी चुनावों में किस तरह से राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती हैं।
‘एक देश-एक चुनाव’ व्यावहारिक नहीं, असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश: मल्लिकार्जुन खरगे – Nishchay Times

Author: Sweta Sharma
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