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बंगाल में 43 साल बाद कोटग्राम नरसंहार के 13 दोषियों को उम्रकैद, 1981 की भयावह घटना का फैसला आया

बंगाल के बीरभूम जिले के कोटग्राम गांव में 43 साल पुराने एक नरसंहार के मामले में न्यायालय ने 13 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह मामला 8 अगस्त, 1981 का है, जब एक धार्मिक समारोह के दौरान हुए विवाद ने नौ निर्दोष युवकों की जान ले ली थी।
क्या थी घटना ?
घटना के दिन, एक ही परिवार के छह युवकों और उनके तीन रिश्तेदारों के बीच एक धार्मिक समारोह के दौरान विवाद हुआ। बात इतनी बढ़ गई कि गांव के लोगों ने उन नौ युवकों को घेर लिया। जान बचाने की कोशिश में वे एक घर में छिप गए, लेकिन भीड़ ने उस घर में आग लगा दी और लाल मिर्च पाउडर छिड़ककर उन्हें बाहर निकलने से रोक दिया। आग और घुटन के बीच फंसे इन युवकों को बाद में भीड़ ने निर्ममता से काटकर मार डाला।
लंबी अदालती प्रक्रिया और सजा:
इस सनसनीखेज हत्याकांड में 72 संदिग्धों की पहचान की गई थी। चार दशकों तक चली लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद, बीरभूम की सिउडी कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश टी भट्टाचार्य ने सोमवार को 13 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही, प्रत्येक दोषी पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। दोषियों को घर में आग लगाने के लिए भी सात साल की अतिरिक्त सजा और 5,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा।
पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया:
कोटग्राम नरसंहार में मारे गए नौ युवकों के परिवारों के लिए यह निर्णय एक बड़ी राहत लेकर आया। मनीर शेख, पीड़ित परिवार के एक सदस्य, ने कहा, “देर आए, दुरुस्त आए। आखिरकार कोर्ट ने दोषियों को सजा दी, और इससे हमें संतोष है।” एक अन्य परिवार के सदस्य एस.एम. बदरुज्जमान ने कहा, “हम खुश हैं कि देर से ही सही, लेकिन हमें न्याय मिला।”
न्याय की लड़ाई:
चार दशकों से चल रही इस कानूनी लड़ाई में साक्ष्यों के अभाव के चलते 23 आरोपियों को बरी कर दिया गया, जबकि कई अभियुक्तों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। इतने सालों तक चले इस मुकदमे में सबूत जुटाना और न्याय पाना पीड़ित परिवारों के लिए एक कठिन लड़ाई रही, लेकिन अंततः उन्हें न्याय मिलने से राहत महसूस हो रही है।
न्यायिक प्रक्रिया में देरी:
इस घटना पर न्याय मिलने में 43 साल का समय लगना भारतीय न्यायिक प्रणाली की धीमी प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। हालांकि, पीड़ित परिवारों के लिए इस फैसले से न्याय की जीत हुई है, लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि न्याय पाने के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ा।
यह निर्णय बंगाल के इतिहास में एक काले अध्याय के अंत का प्रतीक है, जो यह संदेश देता है कि चाहे जितना समय बीत जाए, न्याय की उम्मीद नहीं छोड़ी जानी चाहिए।
Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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