उत्तर प्रदेश के वाराणसी में साईं बाबा की प्रतिमाओं को लेकर विवाद तेज हो गया है। अब तक 14 मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियां हटा दी गई हैं, जिनमें प्रसिद्ध बड़ा गणेश मंदिर भी शामिल है। यह अभियान सनातन रक्षक सेना के नेतृत्व में चलाया जा रहा है, जिसका नेतृत्व अजय शर्मा कर रहे हैं। हिंदू संगठनों ने 28 और मंदिरों को निशाने पर लिया है, जहाँ से साईं की प्रतिमाएं हटाने की योजना है।
क्यों हटाई जा रही हैं प्रतिमाएं?
हिंदू संगठनों का दावा है कि साईं बाबा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं है, और वे मुस्लिम थे। उनका कहना है कि साईं बाबा की पूजा का विरोध नहीं है, लेकिन उन्हें हिंदू मंदिरों में स्थापित करने का विरोध हो रहा है। संगठनों का तर्क है कि साईं बाबा की प्रतिमाओं को मंदिरों से हटाकर अलग स्थान पर स्थापित किया जाए, जहाँ उन्हें पूजने वाले लोग जा सकें।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और प्रशासन की चुप्पी
सनातन रक्षक सेना के दीपक यादव ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, साईं बाबा को चांद बाबा बुलाया जाना चाहिए। इसी आदेश का पालन करते हुए वार्ता के बाद मंदिरों से साईं की प्रतिमाएं हटाई गईं। उन्होंने यह भी कहा कि जब प्रतिमाएं स्थापित की जा रही थीं, तभी विरोध किया जाना चाहिए था, लेकिन अब प्रतिमाओं को हटाना आवश्यक हो गया है।
प्रशासन की गैर-मौजूदगी में हटाई गईं मूर्तियां
इस अभियान के दौरान प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए एक व्यक्ति ने बताया कि जब साईं प्रतिमा हटाई जा रही थी, तब प्रशासन का कोई हस्तक्षेप नहीं था। यह अभियान शंकराचार्य के निर्देशानुसार चलाया जा रहा है, जिसमें साईं बाबा के प्रति अनादर नहीं है, बल्कि उनका एक अलग स्थान निर्धारित करने की मांग की जा रही है।
अजय शर्मा का बयान
सनातन रक्षक दल के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा ने बताया कि अब तक 14 मंदिरों से साईं की प्रतिमाएं हटा दी गई हैं और आगे भी यह अभियान जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि वे भी पहले साईं बाबा की पूजा करते थे, लेकिन पिछले छह वर्षों से उन्होंने इसे बंद कर दिया है। उनका मानना है कि साईं बाबा की पूजा प्रेत पूजा के समान है, और इसे सनातन धर्म के मंदिरों में स्थान नहीं दिया जाना चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद वाराणसी में धार्मिक और सामाजिक विवाद ने जोर पकड़ लिया है। लोगों में इस मुद्दे पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोग इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं।
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Author: Sweta Sharma
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