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चुनाव के वक्त राम रहीम को मिलती रही पैरोल: संयोग या प्रयोग?

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को एक बार फिर से पैरोल मिल गई है, और इस बार भी इसे लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मिली इस 20 दिन की पैरोल ने एक बार फिर राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। पिछले चार वर्षों में यह 10वीं बार है जब राम रहीम जेल से बाहर आया है, और इनमें से छह बार वह चुनाव के समय ही पैरोल पर बाहर रहा है। सवाल यह उठता है कि क्या यह महज संयोग है या किसी रणनीति के तहत हो रहा प्रयोग?
चार साल में 10वीं बार जेल से बाहर
राम रहीम, जो साध्वियों से बलात्कार और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामलों में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहा है, अक्टूबर 2020 से अब तक 10 बार जेल से बाहर आ चुका है। पिछले नौ महीनों में यह तीसरी बार है जब वह पैरोल पर बाहर आया है। हर बार राम रहीम को पैरोल मिलने पर चर्चा और विवाद खड़े होते रहे हैं, लेकिन इस बार चुनाव से ठीक पहले मिली पैरोल ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है।
चुनाव के वक्त पैरोल मिलना बना सवाल
इस बार भी राम रहीम को पांच अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले पैरोल मिली है। पिछले मामलों पर नज़र डालें तो 7-8 फरवरी 2022 को 21 दिन की पैरोल पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मिली थी। फिर जून 2022 में 30 दिन की पैरोल हरियाणा नगर निगम चुनावों से पहले मिली। अक्टूबर 2022 में आदमपुर सीट पर उपचुनाव के समय भी वह 40 दिन के लिए बाहर आया। इसके बाद पंचायत चुनाव से पहले जुलाई 2023 में 30 दिन की पैरोल और राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर 2023 में पैरोल मिली थी।
हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में राम रहीम का प्रभाव हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। उनकी पैरोल को लेकर उठ रहे सवाल यही संकेत देते हैं कि उनके अनुयायियों के बीच उनकी सक्रियता किसी न किसी रूप में चुनावों को प्रभावित करती रही है।
कांग्रेस ने जताई आपत्ति, लेकिन खुलकर विरोध से बच रही
इस बार हरियाणा कांग्रेस ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर राम रहीम को मिली पैरोल का विरोध दर्ज कराया है। पार्टी ने आरोप लगाया कि चुनाव से पहले पैरोल का राजनीतिक उद्देश्य है और यह निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, कांग्रेस के शीर्ष नेता इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से बचते दिखे। माना जा रहा है कि राजनीतिक दल राम रहीम के बड़े अनुयायी वर्ग को नाराज़ करने से बचना चाहते हैं, क्योंकि इसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है।
राम रहीम का प्रभाव और राजनीतिक महत्व
राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के रूप में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं, जिनका चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव है। उनके समर्थक कई राज्यों में चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, खासकर हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियाँ उनके मुद्दों पर खुलकर बोलने से बचती हैं।राम रहीम की पैरोल को लेकर हर बार चुनाव के समय उठने वाले सवाल यही दर्शाते हैं कि यह महज संयोग नहीं है। राजनीतिक पार्टियों के लिए राम रहीम का समर्थन चुनावों में अहम भूमिका निभाता है, और यही वजह है कि उनकी पैरोल को लेकर हमेशा से विवाद उठते रहे हैं।
Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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