श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के लिए निराशाजनक साबित हुए। कभी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी रही महबूबा मुफ्ती की पार्टी को इस बार मात्र तीन सीटें ही हासिल हो सकीं। 2014 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी PDP, जिसने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी, अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती दिख रही है।
10 साल में हुआ बड़ा बदलाव
एक दशक पहले, PDP जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी। 2014 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतकर किंगमेकर बनी पार्टी ने BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन 2024 में कहानी पूरी तरह बदल गई। इस बार PDP को सिर्फ 8.87% वोट शेयर मिला और पार्टी केवल तीन सीटों पर सिमट कर रह गई।
जिन तीन सीटों पर मिली जीत
PDP को जिन तीन सीटों पर जीत मिली है, उनमें कुपवाड़ा, त्राल और पुलवामा शामिल हैं। त्राल में पीडीपी उम्मीदवार रफीक अहमद नाइक ने बेहद कांटे की टक्कर में सिर्फ 460 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। कुपवाड़ा से मीर मोहम्मद फयाज और पुलवामा से वहीदुर्रहमान पारा ने पार्टी की साख को बचाने में अहम योगदान दिया।
इल्तिजा मुफ्ती की हार और पारिवारिक झटका
PDP के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती बिजबेहारा से चुनाव हार गईं। यह पारिवारिक सीट लंबे समय से मुफ्ती परिवार का गढ़ रही है, लेकिन इस बार नेशनल कांफ्रेंस के बशीर अहमद शाह वीरी ने उन्हें 9770 वोटों के भारी अंतर से हरा दिया।
PDP की गिरती स्थिति का विश्लेषण
PDP की इस गिरावट ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में पार्टी के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक समय जो पार्टी सत्ता का केंद्र थी, वह अब केवल तीन सीटों तक सिमट गई है। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी की स्थिति कमजोर करने में आंतरिक कलह, नीतियों में अस्थिरता, और गठबंधन टूटने जैसी कई वजहें शामिल रही हैं।
भविष्य की चुनौतियां
महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली PDP के सामने अब एक बड़ी चुनौती है—पार्टी को पुनः संगठित करना और नए सिरे से जनता का विश्वास जीतना। PDP को अब एक ठोस रणनीति और नेतृत्व में सुधार की जरूरत है ताकि वे आने वाले चुनावों में खुद को फिर से मजबूत कर सकें।जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में PDP का पतन एक बड़ी घटना है। यह चुनाव परिणाम न सिर्फ मुफ्ती परिवार बल्कि पार्टी के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकते हैं। पार्टी को अब अपनी पहचान और साख को बचाने के लिए बड़े सुधारों और गंभीर रणनीतिक बदलावों की जरूरत है।

Author: Sweta Sharma
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