दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) ने राजधानी में 14 अक्टूबर से 1 जनवरी तक पटाखों की खरीद-बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध ऑनलाइन माध्यमों पर भी लागू रहेगा। आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। दिवाली से पहले अक्सर लगाए जाने वाले इस प्रतिबंध का उद्देश्य राजधानी में प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करना है, लेकिन पिछले वर्षों के अनुभवों से यह स्पष्ट हुआ है कि ये उपाय प्रभावी नहीं साबित हो रहे हैं।
प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर चिंता: हर साल दिवाली के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर ‘गंभीर’ से ‘अति गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किया जाता है। 2023 की दिवाली के बाद, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में पीएम 2.5 और पीएम 10 का घनत्व ‘बहुत खराब’ श्रेणी में था। पटाखों के चलने के बावजूद केवल 40 लोगों पर केस दर्ज किए गए थे, जिससे यह संकेत मिलता है कि प्रतिबंध के बावजूद राजधानी में व्यापक स्तर पर पटाखे जलाए गए।
आसपास के इलाकों से पटाखों की उपलब्धता: दिल्ली में प्रतिबंध के बावजूद लोग आसपास के राज्यों से पटाखे मंगवाते हैं, और धार्मिक महत्व के कारण पुलिस भी सख्त कार्रवाई करने से बचती है। विशेषज्ञों का मानना है कि दिवाली के समय हवा का बहाव कम होने से पटाखों से निकले कण लंबे समय तक हवा में रहते हैं, जिससे प्रदूषण की स्थिति बदतर हो जाती है।
पिछले वर्षों के अनुभव: 2022 और 2021 की दिवाली पर भी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी में था। पटाखों के अलावा पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं ने भी वायु गुणवत्ता को और बिगाड़ा। हालांकि 2022 में प्रदूषण का स्तर 2021 की तुलना में थोड़ा कम था, लेकिन हवा की गति में बदलाव के कारण यह सुधार हुआ था, न कि पटाखों पर प्रतिबंध के कारण।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय: स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. एनपी साई के अनुसार, पटाखों पर प्रतिबंध से प्रदूषण में कुछ हद तक कमी जरूर आती है, लेकिन यह आम लोगों द्वारा महसूस किए जाने योग्य नहीं होती। दिवाली के आसपास हवा की गति धीमी होने के कारण पटाखों के कण हवा में बने रहते हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक हो जाता है।
क्या हो सकते हैं उपाय? डॉ. साई का मानना है कि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए जागरूकता फैलाना सबसे कारगर तरीका हो सकता है। जिस तरह तंबाकू और सिगरेट के खिलाफ अभियान चलाकर उनके उपयोग में कमी लाई गई है, उसी तरह लोगों को बच्चों पर प्रदूषण के असर के बारे में जागरूक कर उन्हें पटाखे चलाने से बचने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। साथ ही, हरित पटाखों के उपयोग को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया जा सकता है। हालांकि, परंपराओं के कारण पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध की उम्मीद करना व्यावहारिक नहीं है।
पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद दिल्ली में प्रदूषण पर काबू पाना अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सख्त प्रतिबंधों और जागरूकता अभियानों के साथ-साथ हरित विकल्पों को बढ़ावा देकर ही दीर्घकालिक समाधान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है

Author: Sweta Sharma
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