[the_ad id="4133"]
Home » इंडिया » 25 साल की उम्र में कर दिया था अंग्रेजों की नाक में दम, पढ़िए बिरसा मुंडा के संघर्ष की कहानी

25 साल की उम्र में कर दिया था अंग्रेजों की नाक में दम, पढ़िए बिरसा मुंडा के संघर्ष की कहानी

बिरसा मुंडा एक ऐसे आदिवासी नायक थे जिन्होंने महज 25 साल की उम्र में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया और आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। 15 नवंबर 1875 को ओडिशा के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में जन्मे बिरसा ने आदिवासी समाज में व्याप्त अन्याय और शोषण के खिलाफ अपनी मुहिम शुरू की, जो अंततः भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गई।
शिक्षा से क्रांतिकारी बनने तक का सफर
बिरसा मुंडा की प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में हुई थी, जहां उन्होंने अंग्रेजों और मिशनरियों द्वारा आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों को देखा। यहां उनकी सोच में एक क्रांतिकारी बदलाव आया और उन्होंने आदिवासी समाज के हक में संघर्ष करने की ठानी।
‘उलगुलान’ आंदोलन की शुरुआत
बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ ‘उलगुलान’ आंदोलन की शुरुआत की, जो मुख्य रूप से खूंटी, तमाड़ और बंदगांव जैसे इलाकों में फैल गया। इस आंदोलन में आदिवासियों ने ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ एकजुट होकर उनका विरोध किया। बिरसा का नारा था, “अबुआ दिशुम, अबुआ राज,” जिसका अर्थ था – “हमारा देश, हमारा शासन”। उन्होंने आदिवासियों से कहा कि वे अंग्रेजों को कोई टैक्स नहीं देंगे और अपनी भूमि पर किसी का भी अधिकार नहीं मानेंगे।

‘बिरसाइत’ धर्म का गठन
बिरसा मुंडा का एक और बड़ा योगदान ‘बिरसाइत’ धर्म की स्थापना था। जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज आदिवासियों को ईसाई धर्म में बदलने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्होंने मिशन स्कूल को छोड़ दिया और आदिवासी धर्म और संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से ‘बिरसाइत’ धर्म की शुरुआत की। यह धर्म आदिवासी परंपराओं और संस्कृति को बचाने का प्रयास था, और बिरसा को ‘धरती आबा’ यानी ‘धरती पिता’ का दर्जा मिला।
बिरसा की गिरफ्तारी और मौत
बिरसा मुंडा की लोकप्रियता और उनके विचारों से अंग्रेजी सरकार भयभीत हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने बिरसा को पकड़ने के लिए 500 रुपये का इनाम घोषित किया। एक गद्दार की मदद से बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में डाल दिया गया। वहां उन्हें धीमा जहर दिया गया, जिससे उनकी तबियत बिगड़ती गई और 9 जून 1900 को उनकी मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने इसे हैजा से मौत का कारण बताया, लेकिन आदिवासी समाज का मानना था कि उनकी हत्या की गई थी।
बिरसा मुंडा का विरासत
बिरसा मुंडा का योगदान न सिर्फ आदिवासी समाज के लिए, बल्कि पूरे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए भी महत्वपूर्ण था। आज भी बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज में भगवान के रूप में पूजा जाता है, और उनकी जयंती 15 नवंबर को पूरे देश में बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है। उनका संघर्ष न केवल आदिवासी अधिकारों के लिए था, बल्कि एक स्वतंत्र और समृद्ध भारत की परिकल्पना का हिस्सा था।
Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

Share This

Post your reaction on this news

Leave a Comment

Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com