देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन अब बनकर तैयार हो चुकी है और इसका ट्रायल भी सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। यह ट्रेन हरियाणा के जींद से सोनीपत के बीच चलाई जाएगी। भारतीय रेलवे के अनुसंधान, डिज़ाइन और मानक संगठन (RDSO) ने इस ट्रेन की पहली तस्वीर जारी कर दी है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि यह ट्रेन पर्यावरण के लिए एक बड़ी सौगात साबित होगी।
मार्च-अप्रैल 2025 में शुरू होगी सेवा
RDSO के निदेशक उदय भोरवनकर ने बताया कि इस हाइड्रोजन ट्रेन का संचालन मार्च-अप्रैल 2025 तक शुरू होने की उम्मीद है। ट्रेन की अधिकतम रफ्तार 110 किलोमीटर प्रति घंटा होगी और इसमें कुल आठ कोच होंगे। इसे इंटिग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) चेन्नई में बनाया गया है।
हाइड्रोजन ट्रेन की तकनीकी विशेषताएं
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हाइड्रोजन फ्यूल सिस्टम: ट्रेन में हाइड्रोजन को फ़्यूल में कन्वर्ट करने के लिए चार बैटरियां लगाई गई हैं।
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पावर सेटअप:
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210 किलोवॉट की बैटरी ड्राइवर डेस्क के पीछे होगी।
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हाइड्रोजन सिलेंडर कास्केड सिस्टम (1, 2 और 3) से जुड़ा होगा।
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अंत में 120 किलोवॉट की बैटरी और फ्यूल सेल की व्यवस्था होगी।
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कंट्रोल पैनल: ड्राइवर डेस्क के पीछे कंट्रोल पैनल होगा जो ट्रेन के संचालन को मॉनिटर करेगा।
दुनिया में हाइड्रोजन ट्रेन का इतिहास
हाइड्रोजन फ्यूल वाली ट्रेन अब तक केवल जर्मनी, स्विट्जरलैंड, और चीन में बनाई गई है।
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जर्मनी: यह ट्रेन सफलतापूर्वक चल रही है लेकिन इसमें केवल दो कोच ही हैं।
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अन्य देशों में इसका बड़े पैमाने पर संचालन अब तक सफल नहीं हो पाया है।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है,
“भारत इस तकनीक पर महारत हासिल करना चाहता है। अन्य देशों ने 1000 हॉर्सपावर तक की ट्रेन बनाई है, जबकि भारत 1200 हॉर्सपावर की क्षमता पर काम कर रहा है।”
‘नमो ग्रीन रेल’ नाम तय?
फिलहाल, इस ट्रेन को ‘नमो ग्रीन रेल’ नाम दिया गया है, लेकिन रेल मंत्री ने कहा है कि इसका नाम आधिकारिक तौर पर बाद में घोषित किया जाएगा।
पर्यावरण के लिए गेम-चेंजर
हाइड्रोजन ट्रेन को ‘ग्रीन ट्रांसपोर्टेशन’ की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इसका उद्देश्य न केवल रेलवे को पर्यावरण-अनुकूल बनाना है, बल्कि यह तकनीक भविष्य में बोट्स, शिप टग्स, और ट्रकों में भी इस्तेमाल की जा सकती है।
देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन भारत के रेलवे और पर्यावरण दोनों के लिए ऐतिहासिक कदम है। इसे जल्द ही आम यात्रियों के लिए शुरू किया जाएगा। यह तकनीक भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने में मदद करेगी।

Author: Sweta Sharma
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