नई दिल्ली : 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराने की घटना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद पल के रूप में दर्ज है। यह घटना तब हुई जब लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था, जो एक ऐतिहासिक मस्जिद थी, जिसे 16वीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट बाबर के आदेश पर बनवाया गया था।
इस घटना ने भारत में एक गहरी धार्मिक और सामाजिक खाई पैदा कर दी। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद उस समय से लेकर आज तक एक विवादित मुद्दा बना हुआ है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव और संघर्ष हुए। कारसेवकों का यह दावा था कि बाबरी मस्जिद उस स्थान पर बनी थी, जो हिंदू धर्म के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान था, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे एक ऐतिहासिक मस्जिद मानता था।

मस्जिद को गिराए जाने के बाद, देशभर में दंगे भड़क गए और हजारों लोग प्रभावित हुए। इसके साथ ही इस घटना ने भारतीय राजनीति को भी गहरे तरीके से प्रभावित किया। कई वर्षों तक यह विवाद भारतीय राजनीति का केंद्र बना रहा और इसके परिणामस्वरूप कई बड़े राजनीतिक और सामाजिक घटनाएँ घटीं।
बाबरी मस्जिद गिराने के बाद इस विवाद में कई कानूनी मुकदमे और जांच आयोग गठित किए गए। 2019 में, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें राम जन्मभूमि के पक्ष में निर्णय दिया गया और मस्जिद के लिए अयोध्या में ही एक अलग स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया गया।
यह घटना भारतीय समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण, राजनीतिक आंदोलनों और सामाजिक मुद्दों को प्रभावित करने वाली एक बड़ी घटना के रूप में देखी जाती है।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराने की घटना भारतीय इतिहास में एक गहरे और विवादास्पद पल के रूप में याद की जाती है। यह घटना न केवल धार्मिक तनाव का प्रतीक बनी, बल्कि भारतीय समाज और राजनीति को भी प्रभावित करने वाली थी।
बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528 में मुग़ल सम्राट बाबर के आदेश पर हुआ था। लेकिन हिन्दू धार्मिक समुदाय का दावा था कि यह मस्जिद उस स्थान पर बनी थी, जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इस विवाद ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के मध्य में एक रूप लिया और 1980 के दशक में यह विवाद और भी उग्र हो गया।
1986 में एक स्थानीय अदालत ने मंदिर के कपाट हिंदू भक्तों के लिए खोलने का आदेश दिया था, जिससे विवाद और बढ़ गया। इसके बाद 1990 में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने ‘राम रथ यात्रा’ शुरू की, जो हिन्दू धार्मिक संगठनों द्वारा राम मंदिर निर्माण के समर्थन में थी। इस यात्रा ने पूरे देश में धार्मिक उबाल पैदा किया और राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ आया।
6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे। ये कारसेवक बाबरी मस्जिद को गिराने के उद्देश्य से वहां इकट्ठा हुए थे। सुबह के समय, बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में तैनात पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी के बावजूद, एक बड़ी भीड़ ने मस्जिद की दीवारों को तोड़ दिया और मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। कारसेवकों का मानना था कि यह कार्य राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए आवश्यक था। मस्जिद को गिराने का दृश्य टीवी चैनलों के माध्यम से देशभर में प्रसारित हुआ और इसने एक राष्ट्रीय विवाद को जन्म दिया।
बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के बाद पूरे देश में धार्मिक दंगे भड़क गए, जिसमें हजारों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। विभिन्न हिस्सों में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। यह घटना भारतीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्योंकि इसने भाजपा और हिंदूवादी संगठनों की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया, जबकि अन्य दलों और मुस्लिम संगठनों ने इस कदम की निंदा की।
संगठनों और राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ, और बाबरी मस्जिद गिराने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों और संगठनों पर कानूनी कार्रवाई शुरू की गई। लेकिन कई वर्षों तक यह मामला न्यायालयों में चला, और किसी भी निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने में समय लगा।
बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के बाद इस मुद्दे पर कई कानूनी कार्रवाइयाँ की गईं। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला सुनाया, जिसमें यह कहा गया कि अयोध्या की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए – एक हिस्सा रामलला विराजमान (हिंदू पक्ष), दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को दिया जाए। लेकिन इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की गई थी।
2019 में, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राम जन्मभूमि के पक्ष में निर्णय दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने का अधिकार रामलला को दिया जाए और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में कहीं और मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। इस फैसले के बाद, राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ, और 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि पूजन करके राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का शुभारंभ किया।
बाबरी मस्जिद को गिराने की घटना का भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह घटना भारतीय राजनीति में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली मानी जाती है। यह भारतीय समाज में हिंदू-मुस्लिम संबंधों को प्रभावित करने वाली बड़ी घटना थी, और इसे एक ऐसे दौर के रूप में देखा जाता है, जब धर्म और राजनीति के बीच की रेखा और भी धुंधली हो गई थी।
इसके अलावा, बाबरी मस्जिद गिराने के बाद कई अन्य मुद्दों, जैसे कि धार्मिक पहचान, धर्मनिरपेक्षता, और भारतीय संविधान के सिद्धांतों पर गहरे विचार और बहस शुरू हुई। हालांकि, इस घटना ने भारतीय समाज में कुछ कड़े सवाल खड़े किए कि किस हद तक राजनीति और धर्म एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराने की घटना भारतीय इतिहास में एक विभाजनकारी और संवेदनशील विषय बनी रही है। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय राजनीति और समाज में सांप्रदायिक तनाव, संघर्ष और विवादों का दौर शुरू हुआ। इसके बाद के कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रमों ने इस विवाद को और भी जटिल बना दिया। हालांकि, 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इसे एक कानूनी समाधान दिया, लेकिन इस मुद्दे के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रभावों को अभी भी महसूस किया जाता है।
