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रुस नहीं दे रहा सस्ता तेल, आपके पास कोई डील हो तो बताएं : जयशंकर

नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद पश्चिमी देशों ने रूस का बहिष्कार किया, लेकिन भारत ने अपनी दोस्ती बरकरार रखी। इसको लेकर जब विदेश मंत्री एस जयशंकर से सवाल पूछे गए तो उन्होंने करारा जवाब दिया। जयशंकर ने शनिवार को भारत के रूस से तेल खरीदने के फैसले का जोरदार बचाव किया। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या विश्व के पास भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोई बेहतर विकल्प है। यह बयान उन्होंने 22वें दोहा फोरम के पैनल नए युग में संघर्ष समाधान पर चर्चा के दौरान दिया।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार (7 दिसंबर 2024) को दोहा फोरम में डी-डॉलराइजेशन और वैश्विक कूटनीति पर भारत का पक्ष रखा. इस दौरान एस जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से कच्चा तेल खरीदने के भारत के फैसले का बचाव किया.

विदेश मंत्री के रूप में दूसरी बार कार्यभार संभाल रहे एस जयशंकर ने दोहा में कहा, “हां, हमें रूस से तेल मिलता है. जरूरी नहीं कि यह सस्ता हो. क्या किसी देश के पास इससे बेहतर डील है?” रूस इस समय भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है, जो देश के आयात का 35 फीसदी से अधिक है. विदेश मंत्रई जयशंकर ने खाड़ी और भूमध्य सागर क्षेत्र में जंग की स्थिति के कारण भारत सहित सभी देशों पर तेल, उर्वरक और शिपिंग (नौपरिवहन) आदि की लागत में बढ़ातरी पर भी अपनी बातें रखी.

जयशंकर ने स्पष्ट किया कि रूस से तेल खरीदना भारत के लिए कोई सस्ता सौदा नहीं है, बल्कि यह देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की एक आवश्यकता है। उन्होंने कहा, मैं तेल खरीदता हूं। यह सच है। यह सस्ता नहीं है। क्या आपके पास बेहतर डील है?भारत ने हाल के वर्षों में रूस से कच्चे तेल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि की है। रूस अब भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है, जो भारत के कुल तेल आयात का 35 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल की शुरुआत में कीव का दौरा किया और राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की से मुलाकात की। पीएम मोदी ने भारत के शांति के पक्ष में रहने की प्रतिबद्धता दोहराई। दूसरी ओर ज़ेलेंस्की ने भारत से यूक्रेन का समर्थन करने और संतुलनकारी रवैया न अपनाने की अपील की।दोहा फोरम में जयशंकर ने संकेत दिया कि वैश्विक राजनीति में यथार्थवाद की ओर रुख हो रहा है। उन्होंने कहा, वार्ता की आवश्यकता को स्वीकार करना युद्ध जारी रखने की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हो रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एस जयशंकर ने यह समझाया कि भारत कैसे मॉस्को जाकर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करके, कीव जाकर, राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत करके, पारदर्शी तरीके से एक-दूसरे को संदेश देकर अपनी कही गई बात पर आगे बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, “हमारा हमेशा से यह मानना ​​रहा है कि इस युद्ध का समाधान मैदान में नहीं होने वाला है. आखिरकार, इस समाधान के लिए मेज पर साथ बैठना होगा. हमारी कोशिश रही है कि दोनों देशों के बीच आसानी से बातचीत शुरू हो जाए.”

दोहा फोरम के मंच पर बोलते हुए जयशंकर ने साफ किया कि भारत के पास इस जंग को हल करने के लिए कोई शांति योजना नहीं है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच ईमानदार और पारदर्शी बातचीत होती है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत 125 अन्य देशों की भावनाओं और ग्लोबल साउथ के हितों को व्यक्त कर रहा है, जिन्होंने पाया है कि इस युद्ध से उनकी ईंधन लागत, उनकी खाद्य लागत, उनकी मुद्रास्फीति, उनके उर्वरक की लागत प्रभावित हुई है।

Admin Desk
Author: Admin Desk

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