भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की अगली बैठक 29 सितंबर से 1 अक्टूबर तक आयोजित की जाएगी। इस बैठक पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि फरवरी से जून तक RBI पहले ही रेपो रेट में 100 आधार अंकों की कटौती कर चुका है। हालांकि 4 से 6 अगस्त के बीच हुई पिछली बैठक में केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था। अब उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि इस बार RBI अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए फिर से कदम उठा सकता है।
क्यों बढ़ी है कटौती की उम्मीद?
ग्लोबल ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा के अनुसार, महंगाई लगातार 4 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है। ऐसे में RBI के पास ब्याज दरों में ढील देने और घरेलू मांग को समर्थन देने की गुंजाइश है। नोमुरा का अनुमान है कि RBI 25 आधार अंकों की कटौती करके रेपो रेट को 5.25 प्रतिशत तक ला सकता है। इसके साथ ही हाल ही में 22 सितंबर से लागू GST कटौती ने छोटे वाहनों, घरेलू उपकरणों और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में त्योहारी सीजन के दौरान खपत बढ़ाने में मदद की है।
अमेरिकी टैरिफ का दबाव
दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ ने भारतीय निर्यातकों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। 27 अगस्त से लागू इन टैरिफ का असर खासकर छोटी और मध्यम कंपनियों पर देखने को मिल रहा है। अगस्त के व्यापार आंकड़ों में अमेरिका को निर्यात में कमी दर्ज की गई है। नोमुरा का मानना है कि यदि यह व्यापार तनाव लंबे समय तक बना रहा, तो भारत को नौकरियों में कमी, कारखानों के बंद होने और निवेश में गिरावट जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसका असर वित्त वर्ष 2026 की दूसरी छमाही में और स्पष्ट हो सकता है।
रेट में बदलाव की संभावना
नोमुरा ने अपने आकलन में कहा है कि अक्टूबर की बैठक में रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती की 70 प्रतिशत संभावना है। वहीं 30 प्रतिशत संभावना इस बात की है कि RBI दरों में कोई बदलाव न करे और दिसंबर तक अमेरिकी टैरिफ और GST कटौती के प्रभावों का पूरा आकलन करने के बाद ही निर्णय ले।
आगे की चुनौतियां और नीतिगत विकल्प
नोमुरा ने यह भी कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक दबावों और घरेलू चुनौतियों से बचाने के लिए बहुआयामी नीतिगत कदम उठाने की आवश्यकता है। इसमें निर्यातकों को सहारा देना, रेगुलेटरी सुधार लागू करना, मौद्रिक नीति में ढील देना और राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को संतुलित करना शामिल है।
इसलिए, आगामी MPC बैठक न केवल ब्याज दरों के लिहाज से अहम होगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि आने वाले महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था किस दिशा में आगे बढ़ेगी।
