200 साल पुरानी परंपरा, रावण मंदिर में होती है पूजा
अमोर गांव के लोग मानते हैं रावण को विद्वान
दिवाली के 10 दिन बाद होता है रावण दहन और रामलीला
देशभर में दशहरे के दिन रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया जाता है, लेकिन कानपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर अमोर गांव में परंपरा बिल्कुल अलग है। यहां दशहरे के दिन रावण को जलाने की बजाय उसकी पूजा की जाती है। गांव में स्थित रावण मंदिर में लगभग 30 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है, जिसकी पूजा ग्रामीण धूमधाम से करते हैं।
200 साल पुराना इतिहास
अमोर गांव की यह परंपरा करीब दो सदियों पुरानी है। ग्रामीण मानते हैं कि रावण विद्वान और महापंडित था, इसलिए दशहरे के दिन उसकी मूर्ति की पूजा की जाती है। हालांकि, दिवाली बीतने के 10वें दिन गांव में रावण दहन और रामलीला का आयोजन होता है।
रावण पूजा और दहन की परंपरा
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि रावण एक विद्वान होने के बावजूद उसके क्रूर आचरण के कारण श्रीराम को जन्म लेना पड़ा। इसीलिए अमोर गांव में दशहरे पर उसे नहीं मारा जाता, बल्कि दिवाली के बाद ही पुतले का दहन किया जाता है।
रामलीला समिति का आयोजन
गांव की श्रीरामलीला पंचायती समिति के प्रबंधक गजेंद्र तिवारी के अनुसार, यह परंपरा लगभग 226 साल पुरानी है। यहां विजयादशमी पर रावण का वध नहीं होता, बल्कि दिवाली के बाद दशमी तिथि पर ही रावण दहन किया जाता है। ग्रामीण इसे अपने पूर्वजों की धरोहर मानकर आज भी निभा रहे हैं।
