लखनऊ: बहराइच में मूर्ति विसर्जन के दौरान हुई हिंसा और उसके बाद सरकार द्वारा जारी किए गए ध्वस्तीकरण नोटिसों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने योगी सरकार पर सख्त टिप्पणी की। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करेगी।
ध्वस्तीकरण नोटिसों पर याचिका
इस मामले में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें बहराइच के कथित अतिक्रमणकारियों को जारी ध्वस्तीकरण नोटिसों को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया कि सरकार ने समुदाय विशेष के लोगों के निर्माणों को अवैध करार देकर तोड़ने का नोटिस दिया है, जबकि वहां कोई अतिक्रमण नहीं है। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर राज्य सरकार से जवाब तलब करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 4 नवंबर तय की है।
सरकार का विरोध
सरकारी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह ने याचिका का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि जिन निर्माणों को अवैध माना गया है, उन पर नोटिस जारी की गई हैं। याचिका के जरिए इन नोटिसों को चुनौती देना अनुचित है। सरकार की ओर से कहा गया कि इस तरह की जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं होनी चाहिए और इसे खारिज किया जाना चाहिए।
कोर्ट का आदेश
न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को दो दिन का समय दिया है ताकि वह अपनी आपत्तियां दाखिल कर सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 17 सितंबर को ऐसे मामलों में संज्ञान लेकर आदेश दिए हैं, और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करेगी।
पृष्ठभूमि
बहराइच में मूर्ति विसर्जन के दौरान हुई हिंसा के बाद सरकार ने इलाके में ध्वस्तीकरण अभियान चलाया था, जिससे इलाके में तनाव पैदा हो गया था। अतिक्रमण को हटाने के लिए जारी नोटिसों के खिलाफ यह जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें सरकारी कार्रवाई पर सवाल उठाए गए थे।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर को होगी, जिसमें सरकार को अपने पक्ष को और स्पष्ट करना होगा।

Author: Sweta Sharma
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