गुरुग्राम: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 से पहले प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट बादशाहपुर को लेकर भाजपा में छिड़ा विवाद मंगलवार को काफी हद तक थम गया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद प्रबल दावेदार राव नरबीर सिंह ने पार्टी में बने रहने का निर्णय लिया है, जिससे भाजपा के लिए बड़ी राहत की खबर आई है।
बीते कुछ दिनों से राव नरबीर सिंह के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें जोर पकड़ रही थीं। खुद राव नरबीर ने कई बार बयान दिया था कि वह पार्टी के सिपाही हैं और 2014 से 2019 तक पूरी ईमानदारी से काम किया है। गुरुग्राम में विकास की नई इबारत लिखने का दावा करने वाले राव नरबीर पिछली बार टिकट न मिलने से नाखुश थे और इस बार भी अगर उन्हें नजरअंदाज किया जाता, तो वह निर्दलीय या किसी अन्य पार्टी से चुनाव लड़ने पर मजबूर हो सकते थे।
भाजपा में गहराया संकट
बादशाहपुर सहित गुरुग्राम जिले की चार विधानसभा सीटों—गुड़गांव, सोहना, और पटौदी—को लेकर भाजपा में घमासान मचा हुआ है। इनमें सबसे अधिक तनाव बादशाहपुर सीट को लेकर था, जहां से राव नरबीर सिंह की मजबूत दावेदारी के बावजूद उनका नाम विवादों में घिर गया था। पार्टी के भीतर उनके बगावती रुख ने शीर्ष नेतृत्व को चिंतित कर दिया था।
पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को लुभाने के प्रयास में है, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने हालात संभालने के लिए मैदान में उतरते हुए स्थिति को शांत करने का काम किया, और यही वजह है कि मंगलवार शाम को घमासान काफी हद तक थम गया।
राकेश दौलताबाद का प्रभाव
पिछले चुनाव में राव नरबीर सिंह का टिकट काटकर मनीष यादव को दिया गया था, लेकिन वह निर्दलीय उम्मीदवार राकेश दौलताबाद से हार गए थे। इस बार राकेश दौलताबाद की पत्नी कुमुदनी राकेश दौलताबाद चुनाव मैदान में हैं, जिन्हें क्षेत्र की महापंचायत ने चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया है। राकेश दौलताबाद की असमय मृत्यु के बाद उनकी पत्नी के प्रति क्षेत्र में सहानुभूति का माहौल बन गया है, जिससे भाजपा की चुनौती और बढ़ गई है।
राव नरबीर सिंह के समर्थकों में उत्साह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से राव नरबीर सिंह की मुलाकात की खबर आते ही उनके समर्थकों में उत्साह की लहर दौड़ गई। गुरुग्राम के सिविल लाइंस इलाके में समर्थकों ने जमकर आतिशबाजी की और खुशी का इजहार किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुलाकात के बाद भाजपा ने एक बड़ा संकट टालने में सफलता पाई है।
भाजपा अब बादशाहपुर में ऐसे उम्मीदवार को उतारने की तैयारी कर रही है, जो न केवल पार्टी का विश्वासपात्र हो, बल्कि क्षेत्र में भी उसकी पकड़ मजबूत हो। इस बार की चुनावी रणनीति में भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती, क्योंकि क्षेत्र की बदलती राजनीतिक स्थिति और कांग्रेस की मजबूत होती स्थिति को देखते हुए हर कदम फूंक-फूंक कर रखा जा रहा है।
