लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ठंड का प्रकोप धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं वे मजदूर और अस्थायी कर्मी, जो अपने गांवों से रोजगार की तलाश में शहर आते हैं। चिनहट से लेकर देवा रोड मटियारी तक स्थित रैन बसेरों ने ऐसे लोगों के लिए एक अहम सहारा बनकर काम किया है। उत्तर प्रदेश सरकार और नगर निगम द्वारा इन रैन बसेरों में दी जा रही सुविधाएं इस वर्ग के लिए जीवनदायिनी साबित हो रही हैं। खासकर ठंड के मौसम में, जहां जीवन कठिन हो जाता है, रैन बसेरों में कंबल, रजाई, और दो वक्त के खाने की व्यवस्था एक राहत की तरह है।
चिनहट जोन-4 रैन बसेरा

चिनहट जोन-4 के रैन बसेरे में पहुंचने पर यह देखा गया कि यहां 100 से अधिक बेड की व्यवस्था है। ठंड से बचने के लिए गर्म कंबल और लकड़ियों की व्यवस्था भी की गई है। इसके अलावा, यहां आने वाले मजदूरों को ठंड से राहत देने के लिए खाने-पीने की उत्तम सेवाएं उपलब्ध हैं। यहाँ के केयर टेकर आशुतोष चतुर्वेदी है जो किसी संस्था से नगर निगम द्वारा सुनिश्चित किया गया है कि हर जरूरतमंद को आश्रय मिले।
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चिनहट रैन बसेरे में कमियों की झलक

हालांकि, इस रैन बसेरे में कुछ कमियां भी देखी गईं। सबसे प्रमुख कमी नगर निगम द्वारा नियुक्त केयर टेकर की अनुपस्थिति है। इसके बजाय एक एनजीओ के शिक्षक को कार्यभार सौंपा गया है, उनका नाम राकेश कुमार है जिनके पास आवश्यक अनुभव की कमी है। सरकारी केयर टेकर अपनी जगह पर नहीं रहते है वह बाहर रूम लेकर रहते है .

चिनहट रैन बसेरे में प्रमुख समस्याएं

- केयर टेकर की अनुपस्थिति: नगर निगम का कोई भी स्थायी कर्मचारी यहां मौजूद नहीं था।
 - बाथरूम का हाल: बाथरूम के दरवाजों पर लॉक लगे पाए गए, जिससे लोगों को असुविधा हो रही है।
 - खाने की समस्या: मजदूरों को खाना बनाने के लिए अंधेरे में मजबूर देखा गया। यह स्थिति नगर निगम की लापरवाही को दर्शाती है।
 - प्रबंधन का अभाव: केयर टेकर राजेश कुमार, जो एक एनजीओ के शिक्षक हैं, को अस्थायी रूप से कार्यभार सौंपा गया है। जबकि रैन बसेरे की स्थायी देखरेख के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की जरूरत है।
 - संस्था के मालिक की भूमिका: रैन बसेरे के मालिक सरदार बलवीर सिंह साल में केवल एक बार निरीक्षण करते हैं, जिससे व्यवस्थाओं में सुधार की गति धीमी है।
 
मटियारी देवा रोड रैन बसेरा

देवा रोड पर मटियारी के पास स्थित रैन बसेरा की स्थिति चिनहट रैन बसेरे की तुलना में बेहतर है। यहां करीब 80 बेड की व्यवस्था है, जहां साफ-सफाई और कंबल वितरण का अच्छा प्रबंध देखा गया। ठंड से राहत के लिए लकड़ियों का इंतजाम और खाने-पीने की उचित सुविधा भी मौजूद है। जिसके केयर टेकर लवकुश सिंह है.

विशेष रूप से स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सा कक्ष बनाया गया है। यहां मरीजों को प्राथमिक उपचार प्रदान किया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में भेजा जाता है।
नगर निगम और सरकार की पहल
उत्तर प्रदेश सरकार और नगर निगम द्वारा रैन बसेरों की व्यवस्था मजदूरों और अस्थायी कर्मियों के लिए बेहद सराहनीय है। इन आश्रय स्थलों ने सैकड़ों लोगों को कड़कड़ाती ठंड में बचाने का काम किया है। हालांकि, चिनहट जैसे क्षेत्रों में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है।

सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रैन बसेरों की नियमित निगरानी की जाए और जहां कमियां दिखें, उन्हें तुरंत सुधारने के प्रयास हों। चिनहट और मटियारी जैसे क्षेत्रों में रैन बसेरों का कुशल प्रबंधन ठंड के समय मजदूरों और अस्थायी कर्मियों को काफी राहत दे सकता है।
ठंड में सहारा बने रैन बसेरे
ठंड का मौसम गरीबों और अस्थायी मजदूरों के लिए कई कठिनाइयां लेकर आता है। ऐसे में रैन बसेरों का महत्व और भी बढ़ जाता है। चिनहट और मटियारी जैसे इलाकों में नगर निगम और सरकार द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाने की जरूरत है। कंबल, रजाई, और खाने की सुविधा ने लोगों को राहत दी है, लेकिन चिनहट के रैन बसेरे में जो कमियां पाई गईं, वे इस बात का संकेत हैं कि अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
								
			
			




