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बिहार में जातिगत राजनीति की नई हलचल: जीतन राम मांझी और लालू प्रसाद के बीच गड़ेरिया बनाम मुसहर का विवाद

पटना:  बिहार की राजनीति में जातिगत राजनीति का एक नया दौर शुरू हो गया है, जिसमें केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव आमने-सामने आ गए हैं। हाल ही में जीतन राम मांझी ने लालू प्रसाद यादव को “गड़ेरिया” कहकर एक नई बहस छेड़ दी, जिसके बाद से बिहार की राजनीतिक माहौल में हलचल मच गई है।
इस विवाद को और तूल तब मिला जब जीतन राम मांझी के बेटे और बिहार सरकार में मंत्री संतोष कुमार सुमन ने अपने ही पिता को जातिगत राजनीति से बचने की नसीहत दे दी। संतोष सुमन ने खुलकर कहा कि इस तरह की जाति-आधारित राजनीति नहीं होनी चाहिए, चाहे इसे उनके पिता करें या कोई और। उन्होंने इस प्रकार की राजनीति को ‘निचले स्तर की राजनीति’ बताया और कहा कि डिजिटल युग में इस प्रकार की सोच से दूर रहना चाहिए।
 लालू यादव का जवाब: “ऊ मुसहर हैं क्या?”
जीतन राम मांझी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए लालू प्रसाद यादव ने पटना पहुंचने के बाद एक तीखा जवाब दिया। उन्होंने मांझी के मुसहर समुदाय से होने पर सवाल उठाते हुए कहा, “ऊ मुसहर हैं क्या?” लालू का यह बयान बिहार की राजनीति में और विवाद खड़ा कर गया, खासकर तब जब विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत समीकरणों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
 मांझी का पलटवार: “हम गर्व से मुसहर हैं”
लालू यादव के सवाल का जवाब देते हुए जीतन राम मांझी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए अपनी बात स्पष्ट की। उन्होंने लिखा, “लालू जी, हम मुसहर-भुईयां हैं। हमारे पिता, दादा, परदादा सभी मुसहर-भुईयां थें और हम गर्व से कहते हैं कि ‘हम मुसहर हैं’।” मांझी ने इस बयान के साथ अपनी समुदाय की पहचान पर गर्व जताया और इस मुद्दे को और भी संवेदनशील बना दिया।
 जातिगत राजनीति का नया दौर
बिहार में चुनावी माहौल के साथ-साथ जातिगत राजनीति फिर से चर्चा में आ गई है। जीतन राम मांझी और लालू यादव के बीच यह विवाद एक बड़े राजनीतिक संघर्ष का संकेत है, जहां जातिगत समीकरणों को लेकर बड़े नेता आपस में भिड़ रहे हैं। मांझी का यह दावा कि यादव असल में गड़ेरिया हैं और लालू का इस पर पलटवार, जातीय पहचान को लेकर एक नई बहस छेड़ रहा है।
 संतोष सुमन की तटस्थता
वहीं, जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन ने स्पष्ट रूप से जातिगत राजनीति से दूरी बनाने का संकेत दिया है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की राजनीति किसी भी परिस्थिति में नहीं होनी चाहिए और यह निचले स्तर की राजनीति है। उनका यह बयान एक संकेत है कि नई पीढ़ी के नेता जातिगत विभाजन से दूर रहकर विकास और प्रगतिशीलता पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरणों का महत्व हमेशा से रहा है, और यह विवाद एक बार फिर से इसे सामने लेकर आया है। जीतन राम मांझी और लालू यादव के बीच यह जातीय विवाद सिर्फ राजनीतिक भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह चुनावी नतीजों पर भी असर डाल सकता है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे का राजनीतिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या जातिगत राजनीति का यह नया दौर बिहार की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव लाता है।
Sweta Sharma
Author: Sweta Sharma

I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.

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