स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी
“आज कश्मीर के लाल चौक पर निडरता से आयोजित की जा रहीं तिरंगा यात्राएं देखकर उनकी आत्मा को अवश्य संतोष हुआ होगा”- गजेंद्र सिंह शेखावत
निश्चय टाइम्स, डेस्क। संस्कृति मंत्रालय ने भारत केसरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती के दो वर्ष के आधिकारिक स्मरणोत्सव की घोषणा की है। यह भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और औद्योगिक यात्रा को आकार देने वाले दूरदर्शी नेता की विरासत के सम्मान को दर्शाता है।
दिल्ली के सभी क्षेत्रों से आए गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राष्ट्रीय एकता के लिए डॉ. मुखर्जी के आजीवन प्रयासों का स्मरण करते हुए बताया कि किस प्रकार से आज का भारत उनके द्वारा देखे गए स्वप्न को साकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि वह यह देखकर हमें आशीर्वाद दे रहे होंगे कि भारत का विमान चाँद पर पहुंच गया है और भारत का एक सपूत अंतरिक्ष में बैठकर प्रधानमंत्री से स्पष्ट रूप से वार्तालाप कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज कश्मीर के लाल चौक पर निडरता से तिरंगा यात्रा निकाली जा रही हैं, यह देखकर उनकी आत्मा को संतुष्टि मिल रही होगी। निश्चित रूप से, उनकी आत्मा को यह देखकर शांति मिल रही होगी कि भारत के सभी कानून अब कश्मीर में पूरी तरह से लागू हैं। आज एक राष्ट्र, एक झंडा और एक संविधान है।
गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार, डॉ. मुखर्जी द्वारा आत्मनिर्भर, एकजुट और विकसित भारत के परिकल्पित विजन- “स्वतंत्रता के बाद भारत का निर्माण कैसे हो और यह एक विकसित राष्ट्र कैसे बने”- को साकार करने के लिए उनके दिखाए मार्ग पर निरंतर रूप से कदम आगे बढ़ा रही है।”
संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल ने अपने संबोधन में वर्तमान भारत में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्शों की स्थायी प्रासंगिकता का उल्लेख करते हुए कहा कि वह एक महान देशभक्त, दूरदर्शी शिक्षाविद् और भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने इस विश्वास को मूर्त रूप दिया कि हमारे राष्ट्र की पहचान उसके लोगों के साहस और दृढ़ विश्वास पर टिकी है। उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी का दृढ़ विश्वास था कि यदि कभी कोई चुनौती आती है, तो हमारी एकता और हमारे लोकतांत्रिक मूल्य ही हमारी सबसे बड़ी ताकत होंगे। इन मूल्यों की बार-बार, विभिन्न परिस्थितियों और विभिन्न लोगों द्वारा परीक्षा ली जाती है और एक राष्ट्र के रूप में, हमने इन परीक्षाओं का सामना दृढ़ता और संकल्प के साथ किया है।
उन्होंने संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित इस स्मरणोत्सव के राष्ट्रीय स्तर और भावना पर बल देते हुए कहा कि यह स्मरणोत्सव केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। इसे देश भर के हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में मनाया जाता है और यह अगले दो वर्षों तक एक ऐसे नेता को निरंतर श्रद्धांजलि देने के रूप में जारी रहेगा जिनका जीवन भारतीयों की हर पीढ़ी को प्रेरित करता है।
जम्मू-कश्मीर के उधमपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संभाल रहे केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में एक विद्वान, वैज्ञानिक और राजनेता के रूप में डॉ. मुखर्जी की बहुमुखी विरासत पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे स्वतंत्रता-पूर्व युग के महानतम विद्वानों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों में से एक थे। अंग्रेजों ने भी उनकी असाधारण क्षमता और प्रतिभा का लोहा माना होगा लेकिन जो बात उन्हें सबसे अलग बनाती थी, वह उनका अनूठा व्यक्तित्व था।
उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी न केवल एक महान शिक्षाविद थे, बल्कि सिद्धांतों के पक्के व्यक्ति भी थे और वे एक ऐसे अत्यन्त निष्ठावान व्यक्ति थे, जिन्होंने वैचारिक रूप से असहमत होने पर सरकार को त्यागपत्र देने में भी संकोच नहीं किया। ऐसा साहस और दृढ़ विश्वास दुर्लभ है, और यह डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत को परिभाषित करता है।
एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने विभाजन के समय और भारत के प्रारंभिक संवैधानिक इतिहास में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमिका पर एक गहन चिंतनशील दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो उसने विभाजन की त्रासदी का भी अनुभव किया और फिर भी, अगर आज कोई पूछे कि विभाजन का विरोध करने वाली आवाज़ें कौन थीं, तो अधिकांश लोग पांच व्यक्तियों के नाम लेने के लिए भी संघर्ष करेंगे। उन्होंने पूछा कि ऐसा क्यों है? इसका कारण यह था कि सत्ता में रहने वालों के मन में शायद अपराध बोध था। उन्हें डर था कि अगर आने वाली पीढ़ियों को विभाजन के बारे में पूरी सच्चाई पता चल गई तो उन्हें किसी भी दिन जवाबदेह ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विभाजन के महत्वपूर्ण वर्षों के दौरान, ब्रिटिश और कांग्रेस दोनों ने केवल मुस्लिम लीग के साथ बातचीत की लेकिन इसके विपरीत, डॉ. मुखर्जी उन नेताओं के साथ दृढ़ता से खड़े रहे जिन्होंने विभाजन के विचार का विरोध किया। उन्होंने कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस विभाजन के सख्त खिलाफ थे और जब विभाजन को अंततः स्वीकार कर लिया गया, तो डॉ. मुखर्जी ही थे जिन्होंने बंगाल और असम के कुछ हिस्सों को पाकिस्तान को सौंपे जाने से बचाने के लिए कदम उठाया।
