तमिलनाडु। भाषा को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच विवाद जारी है। इस बीच रेलवे स्टेशनों के नाम वाले बोर्ड पर हिंदी में लिखे शब्दों पर कालिश पोतने का मामला सामने आया है। तमिल समर्थक कार्यकर्ताओं ने दो रेलवे स्टेशनों के नाम वाले बोर्ड को काला कर दिया। मामले में रेलवे ने एक्शन लेते हुए पहले तो फौरन इसे ठीक कराया और आरोपियों की पहचान कर उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली।
तमिलनाडु की एमके स्टालिन और केंद्र सरकार के बीच भाषा को लेकर तकरार जारी है। सत्तारूढ़ डीएमके सरकार ने केंद्र पर हिंदी थोपने के आरोप लगाए हैं। खास तौर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) को लेकर तीखी बहस चल रही है। वहीं, केंद्र इन आरोपों को सिरे से नकारती नजर आ रही है।
इस बीच रविवार (23 फरवरी) को तमिलनाडु में तमिल समर्थक कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के दो रेलवे स्टेशनों के नाम वाले बोर्ड पर लिखे हिंदी शब्दों पर कालिख पोत दी। इसका एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें कार्यकर्ता हिंदी में लिखे ‘पोल्लाच्चि जंक्शन’ पर काला पेंट करते दिखाई दे रहे हैं। मामला सामने आने के बाद रेलवे अधिकारियों ने तुरंत इसे ठीक किया। वहीं, दक्षिणी रेलवे के पालघाट मंडल ने इस संबंध में यह भी बताया, ‘आरपीएफ ने पोलाच्चि के आरोपियों की पहचान कर ली है। रेलवे अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन पर मुकदमा चलाया जाएगा। इसे तुरंत ठीक कर दिया गया। अधिकारियों ने यह भी बताया कि इसके अलावा डीएमके कार्यकर्ताओं ने पलयनकोट्टई रेलवे स्टेशन के बोर्ड पर भी हिंदी नाम को काले रंग से रंग दिया। मामले में आरपीएफ ने रेलवे अधिनियम की संबंधित धाराओं में पार्टी के 6 कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज किया है और जांच में जुट गई।
बता दें कि तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) के जरिए केंद्र पर हिंदी थोपने के आरोप लगाए है। बीते दिनों एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम एमके स्टालिन ने कहा कि अगर केंद्र 10 हजार करोड़ रुपये देने की पेशकश करें तो भी वह इसे लागू करने के लिए सहमत नहीं होंगे। उनका कहना है कि नेप का विरोध केवल हिंदी थोपने की कोशिश के चलते नहीं है। कई और कारण है, जिससे छात्रों के भविष्य और सामाजिक न्याय प्रणाली पर गंभीर परिणाम होंगे।
वहीं, केंद्र की ओर से डीएमके सरकार के इन दावों को सिरे से खारिज किया जा रहा है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आरोपों को ‘काल्पनिक’ बताते हुए कहा कि किसी भी भाषा को थोपने की नेप सिफारिश नहीं करती।
