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डॉ वीरेंद्र कुमार भूटान में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे

निश्चय टाइम्स, डेस्क। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक बंधुत्व की एक गहन अभिव्यक्ति के अंतर्गत भारत से भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को 8 से 18 नवंबर 2025 तक सार्वजनिक प्रदर्शनी के लिए भूटान ले जाया जाएगा। ये पवित्र अवशेष नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रतिष्ठापित हैं। यह प्रदर्शनी थिम्पू में आयोजित वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव (जीपीपीएफ) का हिस्सा है, जो विश्व शांति और मानवता की भलाई के लिए प्रार्थना करने वाला एक प्रमुख आयोजन है। यह महोत्सव भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक की 70वीं जयंती के अवसर पर मनाया जा रहा है। यह दुनिया का एकमात्र वज्रयान साम्राज्य है। पवित्र अवशेष को ले जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भारत सरकार के केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार करेंगे और उनके साथ वरिष्ठ भारतीय भिक्षुओं और अधिकारियों का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी जायेगा। वैश्विक शांति प्रार्थना महोत्सव के दौरान भूटान के प्रधानमंत्री, शेरिंग तोबगे ने कहा कि भूटान नरेश ने इस उत्सव की अवधारणा को पृथ्वी पर शांति को उजागर करने के एक आयोजन के रूप में देखा था। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) के संयुक्त प्रयास से, दूसरी बार इन पवित्र अवशेषों को भूटान लाया जा रहा है। पहली बार इसे 2011 में राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक की शादी के उपलक्ष्य में ले जाया गया था।

आस्था और संस्कृति का संगम

इन अवशेषों को सार्वजनिक उपासना के लिए थिम्पू स्थित ताशिचो द्ज़ोंग के कुएनरे हॉल में प्रतिष्‍ठापित  किया जाएगा। यह महल भूटानी सरकार का मुख्यालय है और देश के मठवासी समुदाय के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करता है। उन्होंने पवित्र अवशेषों को थिम्पू लाने की अनुमति देने के लिए भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया तथा दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों को रेखांकित किया।

तीन विशेष प्रदर्शनियाँ इसे और समृद्ध बनाएंगी:

आध्यात्मिक अनुभव को समृद्ध बनाने के लिए, आईबीसी तीन अन्य प्रदर्शनियों का आयोजन करेगा:

  1. गुरु पद्मसंभव: भारत में “अनमोल गुरु” के जीवन और पवित्र स्थलों का अन्वेषण।
  2.  शाक्यों की पवित्र विरासत: बुद्ध अवशेषों की खुदाई और महत्व का विवरण।
  3.  बुद्ध का जीवन और शिक्षाएँ: बुद्ध के ज्ञानोदय मार्ग की एक गहन यात्रा।

इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली अपनी बौद्ध कला एवं विरासत गैलरी से चुनिंदा दुर्लभ मूर्तियां भी प्रदर्शित करेगा।

बौद्ध विरासत की साझी परम्परा

बौद्ध धर्म सदियों से भूटानी पहचान की आधारशिला रहा है, जिसका प्रभाव 7वीं शताब्दी के क्यीचु लखांग जैसे प्राचीन मंदिरों से लेकर प्रतिष्ठित पारो तकत्संग तक स्पष्ट दिखाई देता है। गुरु पद्मसंभव, जिन्होंने भूटान में बौद्ध धर्म को मज़बूत किया। उनकी शिक्षाएँ राष्ट्र की संस्कृति और सकल राष्ट्रीय ख़ुशी सूचकांक के अनूठे विकास दर्शन को साकार करती हैं, जो करुणा और कल्याण के बौद्ध सिद्धांतों में गहराई से निहित है। हाल ही में मंगोलिया, थाईलैंड, वियतनाम और रूस के कलमीकिया क्षेत्र में आयोजित पवित्र अवशेष प्रदर्शनियों के बाद, यह प्रदर्शनी दुनिया के साथ अपनी बौद्ध विरासत को साझा करने की भारत की परंपरा को आगे बढ़ाती है। यह प्रदर्शनी पवित्र पिपराहवा रत्न अवशेषों की हाल ही में भारत में स्वदेश लौटने के बाद आयोजित की जा रही है जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक अमूल्य राष्ट्रीय धरोहर की घर वापसी के रूप में उल्लेखित किया है। भूटान में पवित्र अवशेषों की प्रदर्शनी शांति का एक शक्तिशाली प्रतीक है। यह साझी आध्यात्मिक विरासत का उत्सव भारत और भूटान के संबंधों और मजबूत बनाएगा।

 

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Author: ntuser1

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