उज्जैन। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने सम्राट विक्रमादित्य का टीला है। यह सिंहासन बत्तीसी के नाम से मशहूर है लेकिन अब यह सिंहासन इकत्तीसी रह गया है, क्योंकि 32 में से छठवीं पुतली इंदुमति गायब है। उनके स्थान पर केवल एक बांस और स्टैंड रह गया है। सामने पट्टिका नहीं होती तो पता लगाना भी मुश्किल होता कि यहां कोई पुतली भी थी।
उज्जैन नगर निगम ने सिंहस्थ 2016 के पहले 4.90 करोड़ रुपए से सम्राट विक्रमादित्य के प्राचीन टीले का सौंदर्यीकरण करवाया था। तब यहां विक्रमादित्य की विशाल प्रतिमा के साथ परिसर में 32 पुतलियां और 9 रत्न की प्रतिमाएं स्थापित की गई थीं। आठ साल में इसका रखरखाव नहीं किया गया। निगम आयुक्त ने कहा कि पता करवाएंगे कि पुतलियों की क्या स्थिति है।
रुद्रसागर में विक्रम टीले तक पहुंचने के लिए 65 मीटर लंबा आर्च ब्रिज बनाया गया है। इसके अलावा गोलाकार में बत्तीस पुतलियां स्थापित की गई थीं। थ्रीडी वॉल म्यूरल से इसे सजाया गया था। यहां पर उज्जैन के प्राचीन सिक्के और सम्राट विक्रमादित्य कालीन स्वर्ण मुद्राओं को भी देखा जा सकता है। प्रोजेक्ट के तहत सम्राट विक्रमादित्य सहित 32 पुतलियों का निर्माण इंदौर में किया गया था। नवंबर 2015 से ही मूर्तियों की स्थापना शुरू होने लगी थी।
सम्राट विक्रमादित्य की 25 फीट ऊंची प्रतिमा सिंहासन बत्तीसी पर विराजमान की गई है। प्रतिमा के सामने विक्रमादित्य के 9 रत्नों की मूर्तियां और आसपास 5-5 फीट की 32 पुतलियों की प्रतिमा स्थापित की गई थी। हर पुतली के सामने उनके नाम की पट्टिका और कहानी भी है। नौ रत्नों में से 4 रत्नों की प्रतिमा के लिए लगाए पत्थर भी टूटकर गिर गए हैं।





