कोलकाता। पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।मान्यता है कि गंगा सागर स्नान से 100 अश्वमेध यज्ञ जैसा पुण्य फल मिलता है। इसके साथ ही पापों से भी मुक्ति मिलती है। बता दें कि गंगासागर मेला हिंदू धर्म का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है। ये मेला तिथि के अनुसार हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है।
गंगासागर मेला, जो हर साल पश्चिम बंगाल के सागर द्वीप पर आयोजित होता है, भारत के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है। लाखों श्रद्धालु इस अवसर पर गंगा नदी के संगम में स्नान करने के लिए इकट्ठा होते हैं। इस अवसर पर लोग मानते हैं कि गंगासागर में स्नान करने से उनके पाप धो दिए जाते हैं और वे मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।
गंगा सागर मेले को लेकर देश भर में एक कहावत भी है सब तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार। ये मेला मकर संक्रांति के समय सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब गंगा सागर स्नान का विशेष धार्मिक महत्व है।
गंगासागर मेला, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। गंगा नदी का संगम, जिसे गंगासागर के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक पवित्र स्थान है। यह मेला हर साल श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी आस्था का केंद्र बनता है, जहां लोग न केवल स्नान करते हैं, बल्कि पूजा-अर्चना भी करते हैं और अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने की कामना करते हैं।
इसको लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि गंगा सागर स्नान महाकुंभ से भी बड़ा है। इसके बाद कई तरीके के दावे किए जा रहे हैं. ममता ने इसे केंद्र सरकार से राष्ट्रीय मेला घोषित करने की मांग की है।
गंगासागर तक पहुंचने के लिए भक्तों को कोलकाता से करीब 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, जहां से वे नाव के माध्यम से सागर द्वीप पहुंचते हैं। यह यात्रा काफी कठिन होती है, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह एक आध्यात्मिक यात्रा मानी जाती है। मेला के दौरान, यहां विभिन्न साधु-संत, यति और धार्मिक प्रचारक भी आते हैं, जो भक्तों को धार्मिक उपदेश देते हैं।
गंगासागर मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। हर साल, गंगासागर मेले में दुनिया भर से लाखों लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं। गंगासागर मेला मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले शुरू होता है, और संक्रांति होने के बाद इसका समापन हो जाता है। यह मेला साल में एक ही बार लगता है। मेला के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जिससे स्थानीय व्यापारियों और होटल व्यवसायियों को अच्छा खासा लाभ होता है। इसके अलावा, मेला के आयोजन से स्थानीय सरकार को भी रोजगार और विकास के अवसर मिलते हैं।
हालांकि, हर साल गंगासागर मेले में भीड़-भाड़ और सुरक्षा के लिहाज से चुनौतियां होती हैं। प्रशासन द्वारा इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाता है, ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े। स्वास्थ्य सुविधाएं भी बेहतर की जाती हैं, ताकि किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति में सहायता मिल सके।
ज्योतिष शास्त्र की माने तो यह वह दिन है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. हिंदू संस्कृति के अनुसार, यह दिन अच्छे समय की शुरुआत का प्रतीक है। इसके बाद सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई, और अन्य चीजें की शुरुआत की जा सकती हैं।
कैसे करते हैं गंगा सागर स्नान?
- भक्त सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, और गंगा स्नान के दिन गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं। वे भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद अनुष्ठान शुरू होता है।
- अनुष्ठान पूरा करने के बाद, लोग कपिल मुनि की पूजा करते हैं और देसी घी का दिया जलाते हैं।
- कुछ लोग गंगा स्नान के दिन यज्ञ और हवन भी करते हैं।
- श्रद्धालु गंगा स्नान के दिन उपवास भी रखते हैं।
- गंगा स्नान के इस दिन भक्त देवी गंगा के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगते हैं, जो उन्होंने जाने-अनजाने में किए होंगे।
क्या है गंगा सागर मेले का पौराणिक इतिहास?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, एक बार राजा सगर विश्व विजय के लिए अश्वमेध यज्ञकर रहे थे। स्वर्ग के स्वामी,राजा इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया. इसके बाद घोड़े को पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया। जब राजा सगर के पुत्र घोड़े को लेने आए और उसे कपिल मुनि के आश्रम के पास पाया, तो उन्होंने कपिल मुनि के साथ चोर जैसा व्यवहार किया। कपिल मुनि (भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं) इससे गुस्सा हुए।
उन्होंने लड़कों को श्राप देकर उन्हें राख में बदल दिया. राजा सगर के पोते भगीरथ ने वर्षों तक तपस्या की और पवित्र गंगा से अपने पूर्वजों की राख पर प्रवाहित करने का अनुरोध किया। पवित्र गंगा ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और स्वर्ग से नीचे आकर राजा सगर के पुत्रों की राख को धो डाला।
उनके पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति मिल गयी। यही कारण है कि मोक्ष पाने और पुराने पापों से मुक्ति पाने के लिए लाखों लोग पहुंचते हैं।
अंततः, गंगासागर मेला भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है और यह देशभर के श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष महत्व रखता है।
