अरविंद कांत त्रिपाठी
(मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार)
जब वर्ष 2024 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव का परिणाम आया तो साफ हुआ कि – विधानसभा के कुल 403 विधायकों में से 205 पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। यह विधानसभा में अपराधियों का स्पष्ट बहुमत है।
प्रजातंत्र के पवित्र मंदिर (विधान भवन) में आपराधिक रिकॉर्ड वाले विधायकों, का बहुमत प्रजातंत्र के लिए खतरनाक नहीं है। तभी तो कभी किसी नेता ने पॉकेट से संविधान निकालकर नहीं कहा कि प्रजातंत्र खतरे में है। संविधान खतरे में है। बल्कि स्थिति उलट है। देश के नसीब से, जब किसी दल के दिमाग में अपराधी सांसद, विधायक यहां तक कि सीएम और पीएम तक को किनारे करते हुए उसे, उसके उचित ठिकाने (जेल) तक पहुंचाने का कानून बनाने का विचार आया है तो निर्मित होने वाले कानून को ही प्रजातंत्र के लिए खतरा बताया जा रहा है।
थोड़ा और जान लेते हैं। विधानसभा के कुल 403 माननीय विधायकों में से जिन 205 पर अपराधिक मुकदमें दर्ज हैं उनमें से 158 पर संगीन धाराओं (हत्या, बलात्कार, अपहरण) जैसे मुकदमें हैं।
पिछली विधानसभा (2017) में आपराधिक रिकॉर्ड वाले 147 विधायक थे। पांच साल बाद 36 फीसदी वृद्धि के साथ इनकी संख्या 205 हो गई। इसी तरह 2017 में संगीन अपराध वाले मुकदमें 107 माननीयों पर दर्ज थे तो 2024 में इनकी संख्या 158 गई है। आगे क्या होगा? परमात्मा जानें।
हमाम (स्नान कुंड) में सब निर्वस्त्र हैं। भाजपा के 255 में से 111 विधायक, समाजवादी पार्टी के 111 विधायकों में से 71, राष्ट्रीय लोकदल, के आठ में से सात, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल के छह-छह में से चार-चार और अपना दल सोनेलाल के 12 में से तीन विधायक आपराधिक रिकॉर्ड वाले हैं।
इसके अलावा कांग्रेस, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के कुल दो-दो विधायक हैं। दोनों अपराधिक रिकॉर्डधारी हैं। सदन में बसपा का एकमात्र विधायक है। वह भी अपराधिक रिकॉर्ड वाला है।
संसदीय उपस्थित में जब हमारे सामने – पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, लालबहादुर शास्त्री, अबुल कलाम आजाद, गोविंद बल्लभ पंत, रामधारी सिंह दिनकर, डॉक्टर लोहिया, गुलज़ारी लाल नंदा, कर्पूरी ठाकुर, अटल बिहारी वाजपेई, वीजू पटनायक, मोरार जी, चौधरी चरण सिंह, जान मथाई और के. कामराज आदि राजनीतिक संतों और मनीषियों का आदर्श था तब हम इतने पतित होकर पतन के इस मुहाने पर हैं, तो आज की संसदीय उपस्थिति जिस भावी भारत का आदर्श है, वह भारत कैसा होगा? कहां जाएगा? यह अनुमान भयावह है। गांव-गिरांव में थाली-लोटा चुराते पकड़े गए “धनई” पर पूरा गांव पूरी ताकत और ईमानदारी से हाथ साफ करते हुए उन्हें जमीन पर लम्बा कर देता है। कई दिनों तक धनई को पकड़ने और पीटने वाले “पुरुषार्थ” का बखान होता है। उधर अलत्कार-बलात्कार करते पकड़े जाने पर समाज बलात्कारी को “डायरेक्ट” यमराज के हवाले भी करते देखा जाता है। यह तो रही किसी आम चोर व बलात्कारी की बात। ठहरिए! अभी दूसरी सीन भी है।….. ऐसे ही कई अबलाओं को नोचने वाला बलात्कारी, बच्चों को अनाथ और महिलाओं को बेवा बनाने वाला हत्यारा और अनगिनत लोगों का हक डकार जाने वाला भ्रष्टाचारी “अगर”…अगर समर्थवान है, जातीय मुखिया है, गुंडा है, माफिया है, बाहुबली है तो….तो समाज का पुरुषार्थ (धनई चोर को मिट्टी में लिटा देने वाला) आश्चर्यजनक ढंग से पूरी बेशर्मी के साथ खुद मटियामेट हो जाता है। जाति और धर्म की घिनौनी “सोच” समाज की तार्किक बुद्धि को उसके घुटनों में कर देती है। परिणामतः उस अपराधी को जेल पहुंचाने की उठाने वाली आवाज की जगह, उसका मोहक गुणगान होता है।
हैरत तो यह है कि किसी साइकिल चोर, उचक्के और लफंगे में समाज ; जाति या धर्म न देखकर उसे महज अपराधी के रूप में ही देखता है। लेकिन बड़े-बड़े अपराधों के जरिए नेता बन गए व्यक्ति से समाज अपनी अवचेतना में अपना जातीय रिश्ता जोड़ता है। यही सबसे खतरनाक जोड़ और सारे अनाथों की जड़ है।
पूरे समाज के लिए भले हानिकारक हो लेकिन अपने जाति के अपराधी “उर्फ” नेताजी को वह अपना भाग्यविधाता मानता है। राष्ट्र की भाग्यरेखा तय करने वाले सबसे महत्वपूर्ण समय (चुनाव) में राष्ट्रहित से ऊपर जातीयता को रखता है। नेता जी को अपने कंधों पर बैठाते हुए संसद या विधानसभाओं में पहुंचा कर “माननीय” बना देता है। केवल और केवल यही दृश्य प्रजातंत्र के लिए खतरनाक है। नेताओं द्वारा प्रजातंत्र को खरते में बताने वाली बाकी हर बात चोचला है, बकवास है। लोटा-थाली, साइकिल चुराने वाला अपराधी है। लेकिन हत्या, राहजनी, डकैती, बलात्कार और आकूत भ्रष्टाचार करने वाला अपराधी नहीं माननीय है, कैसे? वह ऐसे, कि वह किसी जाति का, किसी वर्ग का, किसी धर्म का, किसी सोच या संप्रदाय का बड़ा मुखिया है। उसके पीछे जातीय या धार्मिक भावनाओं के उन्माद में गोता लगाने वाला भारी संख्या बल है और संख्या बल ही प्रजातंत्र में ताकत है। इसी संख्या बल का दुरुपयोग या सदुपयोग करके अरविंद केजरीवाल ने भारतीय संविधान के इतिहास में पहली बार जेल से सरकार चलाने का रिकार्ड स्थापित किया है। फिर संख्या बल ही आदमी के वजन का निर्धारक है। उदाहरण सामने हैं – सजायाफ्ता आशाराम बापू और राम रहीम अपने लाखों-करोड़ों भक्तों के संख्याबल पर आज भी वोटबैंक की सियासत में कई टन के वजनी हैं।
बहरहाल किसी मामूली चोर और किसी सामर्थ्यवान माफिया (नामी नेता) के साथ जनता द्वारा किए जाने वाले दो अलग – अलग (दोहरे) आचरण का ज्ञान राजसी भोग करने वाले माननीयों को अच्छी होता है। इसलिए वह, समाज के प्रतिष्ठित लोगों, अच्छे वक्ताओं, कथित समाजसेवकों, चंद प्रभावशाली धर्म गुरुओं और मुल्ला-मौलानाओं की यथायोग्य सेवा (चरण वंदना, धन या धमकी) के आधार पर उन्हें अपना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दरबारी बनाते हैं। अपना स्वाभिमान मार चुके यह दरबारी कवि – अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में उचित समय पर, अपने अन्नदाता (माननीय) का बखान पूरी वैज्ञानिकता के साथ धरतीपुत्र और गरीबों का मसीहा आदि रूपों में करते हैं। चूंकि ये समाज के प्रभावी लोग होते हैं अतः जनता पर इनकी बातों का असर होता है। फिर बौद्धिक रूप से गुलाम यह जनता एक पैकेट में 5-6 पूड़ी, पुड़ियों के बीच दबी थोड़ी सब्जी, मोतीचूर के एक अदद लड्डू पर, स्थानीय दरबारी कवियों की अगुवाई में रिजर्व बस सेवा द्वारा “धरती-पुत्र” की रैलियों में रेला लगाने झुंड के झुंड पहुंचती है।….अगले पांच साल पूड़ी-हलवा से इनका कितना ख्याल होगा ? इसे धरतीपुत्र भी जानता है और जनता भी।
भ्रष्ट और अपराधी नेताओं की “ताकत” उनकी दलाली में लगा भारीभरकम वर्ग है। विशिष्ट कौशल वाला यह वर्ग सत्ता और विपक्ष दोनों में होता है। अपनी आत्मा मार चुका यह वर्ग जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं दे सकता क्योंकि उसके मुंह में निवाला होता है। एक बात और लोगों को मूर्ख बनाना आसान है लेकिन उन्हें यह समझना कठिन है कि उन्हें मूर्ख बनाया गया है। बाबा साहेब ने सोचा था भावी भारत के नेता नैतिक होंगे। वह इतने नैतिक हैं कि जेल से सरकार चलाते हैं। जमानत पर छुटने के बाद लाज-हया को ताख पर रखकर फूल मालाओं से लदा जुलूस निकालते हैं। जनहित के मुद्दों पर संसद को जामकर देश का करोड़ों रुपया फूंक देते हैं। लेकिन अपने वेतन और सुख सुविधा में बढ़ोत्तरी के प्रताव को बिना देर किए सर्वसम्मति से पास कर देते हैं। इसे कहते हैं बाबा साहेब के संविधान को जेब में रखना।
