[the_ad id="4133"]
Home » इंडिया » दिल्ली » अपनी संस्कृति को लेकर भारतवंशियों के उत्साह से अभिभूत हूं : मैथिली ठाकुर

अपनी संस्कृति को लेकर भारतवंशियों के उत्साह से अभिभूत हूं : मैथिली ठाकुर

मेलबर्न: आस्ट्रेलिया में पहली बार कार्यक्रम पेश करने वाली लोक गायिका मैथिली ठाकुर अपने कार्यक्रम में उमड़ी भीड़ को देखकर हैरान रह गईं और उन्होंने कहा कि विदेशों में अपनी संस्कृति को लेकर भारतवंशियों का उत्साह उनके आत्मविश्वास को दोगुना कर देता है । बिहार के मधुबनी की रहने वाली मैथिली ने यहां के व्यस्त फेडरेशन स्क्वेयर पर ‘आलवेज लाइव’ संस्था के एक कार्यक्रम में विभिन्न भारतीय भाषाओं में गीत सुनाये और हजारों की संख्या में उमड़े प्रशंसक उनके गीतों पर झूमे।

दुनिया भर में परफार्म करने वाली मैथिली का आस्ट्रेलिया में यह पहला कार्यक्रम था । उन्होंने यहां भारतीय वाणिज्य दूतावास में दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘मैं जहां भी जाती हूं, भारतीय संगीत का प्रतिनिधित्व करती हूं। मेलबर्न के फेडरेशन स्क्वेयर पर भारत की विभिन्न भाषाओं और भजन, सूफी जैसी अलग अलग शैलियों में गाया। मैंने सोचा नहीं था कि मेलबर्न में इतनी संख्या में लोग सुनने के लिये आयेंगे । ’’

छह वर्ष की उम्र से अपने दादा और पिता से मैथिली लोक संगीत, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत, हारमोनियम और तबले की तालीम लेने वाली 24 वर्षीय इस कलाकार ने कहा ,‘‘जब मैं भारतवंशियों से भारत के बाहर मिलती हूं तो अपनी संस्कृति को लेकर उनके भीतर अधिक उत्साह देखने को मिलता है। बिल्कुल वैसा ही है कि जब घर से दूर होते हैं तो घर की याद ज्यादा आती है । यहां मुझे सुनने के लिये बिहार, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल पदेश, महाराष्ट्र सभी राज्यों के लोग थे और मैंने सभी भाषाओं में गाया।’’

संगीत के प्रति अपने रूझान के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि बचपन से वह लोक गायिका शारदा सिन्हा को सुनती आई हैं जिनका उन पर प्रभाव रहा है । उन्होंने कहा,‘‘ मैं शारदा जी से ज्यादा मिली तो नहीं हूं लेकिन लोकगीत बचपन से सुन रही हूं। मेरे पापा चाहते थे कि मैं अच्छा संगीत सुनूं और यह क्रम शारदा जी के गीतों से ही शुरू हुआ। छठ पूजा का तो पर्यायवाची शारदाजी का नाम है क्योंकि उनके गीतों से ही छठ शुरू होती है और खत्म होती है।’’

मैथिली ने कहा ,‘‘बिहार में महिला सशक्तिकरण की बात करें तो शारदाजी एक मिसाल हैं।‘‘ शारदा सिन्हा का पिछले महीने ही निधन हुआ है । मैथिली का मानना है कि लोक संगीत को सहेजने और उसके प्रचार के लिये सामूहिक प्रयास करने जरूरी हैं । उन्होंने कहा ,‘‘सामूहिक प्रयास करें तो लोकगीतों का प्रसार तेजी से होगा। मैंने जब शुरू किया था तो मेरे पास कोई रोल मॉडल नहीं था कि उसी की तरह काम करना है। मुझे अपना रास्ता खुद बनाना पड़ा और डर भी था कि कहीं गलत तो नहीं हूं क्योंकि उस समय बॉलीवुड पार्श्वगायन का भी विकल्प था।’’

उन्होंने कहा ,‘‘ मेरे पास कई अच्छे मौके थे लेकिन एक फैसला लेना था और मैंने तय किया कि लोक संगीत को जीवन समर्पित करना है।’’ एक सवाल पर मैथिली ने कहा ,‘‘ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड के दरवाजे बंद हो गए हैं लेकिन मेरा मन लोक संगीत में ही रमता है। अभी मैंने ‘औरों में कहां दम था’ फिल्म में गाना गाया है जिसके बोल बहुत अच्छे थे और संगीत भी। लेकिन बॉलीवुड में नहीं गाने से मुझे ऐसा कभी नहीं लगता कि कुछ छूट रहा है।’’

अपने अब तक के सफर के बारे में इस युवा कलाकार ने कहा ,‘‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि लोक गीतों के जरिये मेलबर्न या लंदन तक पहुंच जाऊंगी। मैं भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं सोचती लेकिन हमेशा संगीत की साधना करना चाहती हूं।’’ उदीयमान कलाकारों को क्या संदेश देना चाहेंगी, यह पूछने पर उन्होंने कहा ,‘‘ यही कि अपने सपने के लिये खुद ही लड़ना पड़ता है ,समाज से भी। शुरूआत में कोई साथ नहीं होता लेकिन आप सफल हो जाते हैं तो समाज आपसे जुड़ जाता है जिससे और मजबूती मिलती है। अगर परिवार का साथ है तो आप हर बाधा पार कर सकते हैं। बस सपने देखना नहीं छोड़ना है और हार नहीं माननी है।’

Admin Desk
Author: Admin Desk

Share This

Post your reaction on this news

Leave a Comment

Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com