नई दिल्ली। मणिपुर के कुकी छात्र संगठन और कुकी-जो महिला फोरम दिल्ली और एनसीआर ने शनिवार को दिल्ली के जनता मंतर पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों द्वारा उठाई गई प्रमुख मांगों में से एक मणिपुर के कुकी क्षेत्रों के लिए विधानसभा के साथ एक अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग है। उन्होंने एक औपचारिक बयान जारी किया, जिसकी प्रतियां मांग पत्र के रूप में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के कार्यालयों को भी भेजी जाएंगी, और कहा कि मणिपुर में वर्तमान प्रशासनिक तंत्र हमारे जीवन की रक्षा करने और हमारी शिकायतों, आकांक्षाओं और अधिकारों को संबोधित करने में पूरी तरह विफल रहा है।
प्रदर्शनकारियों द्वारा जारी बयान में कहा गया है, “हम संविधान के अनुच्छेद 239ए और अनुच्छेद 3 के अनुसार विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एक अलग प्रशासन की मांग करते हैं, ताकि स्वशासन के हमारे अंतर्निहित अधिकार को सुरक्षित किया जा सके और भारत संघ के भीतर अपने भाग्य को आकार दिया जा सके। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां लेकर नारे लगाए थे, जिनमें बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को धुआंधार बताया गया था और अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग को उजागर किया गया था। प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर में मौजूदा स्थिति के लिए पूर्व मुख्यमंत्री को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने प्रदर्शन स्थल पर एक बयान जारी किया और कहा, कुकी-ज़ो समुदाय ने ऐतिहासिक अन्याय सहा है और वे मणिपुर में समुदाय के लिए एक राजनीतिक समाधान की तत्काल आवश्यकता पर जोर देना चाहेंगे।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि मणिपुर में मौजूदा प्रशासनिक तंत्र हमारे जीवन की रक्षा करने और हमारी शिकायतों, आकांक्षाओं और अधिकारों को संबोधित करने में पूरी तरह विफल रहा है। उन्होंने कहा, कुकी-ज़ो लोगों की मुक्ति के लिए एक अलग प्रशासन ही एकमात्र व्यवहार्य रास्ता है। प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की कि कुकी-जो समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन और भूमि अधिकार, सांस्कृतिक विरासत और भाषाई पहचान सहित इसके सदस्यों के अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए रोडमैप तैयार करने हेतु जल्द से जल्द एक समिति का गठन किया जाए। उन्होंने कहा, यह मणिपुर की जटिल समस्याओं को सुलझाने तथा आपसी विश्वास का स्थायी माहौल बनाने के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करेगा।
बयान में कहा गया कि एक अलग प्रशासन कुकी-ज़ो समुदाय को बाहरी दमन के बिना अपनी अनूठी सांस्कृतिक विरासत और भाषाई पहचान को संरक्षित करने में सक्षम बनाएगा।
