बिसवां। उर्दू साहित्य के मशहूर शायर और अदीब ताबिश मेंहदी प्रतापगढ़ी की याद में स्थापित ताबिश लिटरेरी सोसायटी ने सीतापुर के बिसवां में एक शानदार अदबी महफ़िल और मुशायरे का आयोजन किया। इस विशेष कार्यक्रम में एक दर्जन से भी अधिक अदीबों और शायरों ने अपने कलाम पेश किए और शायरी की दुनिया में एक नई जान डाल दी। कार्यक्रम में डॉ. सगीर आलम और अजमल बिसवानी को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के संयोजक और मशहूर शायर रहबर प्रतापगढ़ी ने शायरों और अतिथियों का स्वागत फूलों की माला पहनाकर किया और उन्हें अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मास्टर गुलरेज़ बनारसी ने की।
अदबी महफ़िल को संबोधित करते हुए रहबर प्रतापगढ़ी ने उर्दू को हिन्दुस्तानी ज़बान बताते हुए कहा कि यह भाषा यहीं पैदा हुई और इसने भारतीय समाज की विविधता में एकता की मिसाल पेश की। उन्होंने कहा कि उर्दू के विकास में हिन्दुस्तान के सभी मजहबों और समुदायों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है, और इसे किसी एक धर्म या क्षेत्र से जोड़ना उचित नहीं है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. सगीर आलम और अजमल बिसवानी ने भी उर्दू की अहमियत पर प्रकाश डाला। डॉ. सगीर आलम ने कहा कि उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि एक तहजीब है जिसे हर कोई पसंद करता है। डॉ. अजहर खैराबादी ने उर्दू भाषा और साहित्य की स्वतंत्रता संग्राम और देश की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। क़ारी आज़म जहांगीराबादी ने उर्दू भाषा की मिठास और दिलकशी पर विस्तार से बात की। समारोह में श्रोताओं की बड़ी संख्या मौजूद रही।
इस मौके पर शायरों ने अपनी कविता और शेर प्रस्तुत किए, जिनमें से कुछ प्रमुख शेर इस प्रकार थे:
डॉक्टर अजमल बिसवानी ने कहा:
नहीं मरने का अपने ग़म अगर ग़म है तो ये ग़म है
हमारे इम्तिहां के बाद किसका इम्तिहां होगा।
डॉक्टर अज़हर ख़ैरबादी ने अपने कलाम में कहा:
जितना मुझे तपाया गया गम की आग में
सोने की तरह और निखरता चला गया।
कारी मुहम्मद आज़म जहांगीराबादी ने कहा:
लाएगा उन्हें मरकज़-ए–वाहिद पे भला कौन
जो एक न होने की कसम खाए हुए हैं।
हाफ़िज़ मसऊद महमूदाबादी ने इस शेर के साथ अपनी बात रखी:
दर्द को और बढ़ा देते हैं बनकर नासूर
फूट जाते हैं फफोले जो जिगर के अंदर।
ज़ुबैर बिसवानी ने शेर के माध्यम से कहा:
ज़ुबैर ये दौलतो ताक़त ये शोहरत और इल्मो फन।
अता करदा है सब रब का भला इसमें तेरा क्या है।
रहबर प्रतापगढ़ी ने अपनी खास प्रस्तुति में कहा:
वह क्या डरेंगे गर्दिशे लैलो नहार से
रहते हैं जो जहां में सलीके से प्यार से।
अनवर बिसवानी ने अपने शेर में कहा:
हर एक सिमत से घेरे हुए हैं खार हमें।
लहू भी देके मयस्सर नहीं बहार हमें।
इस शानदार अदबी महफ़िल में मास्टर असलम, डॉ. अहमद अली अंसारी, डॉ. रफीक अंसारी, मास्टर मंसूर आलम समेत बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी और श्रोता मौजूद थे। इस कार्यक्रम ने उर्दू साहित्य के प्रति लोगों में नई जागरूकता और रुचि पैदा की और यह साबित किया कि उर्दू न सिर्फ एक भाषा, बल्कि एक समृद्ध साहित्यिक धरोहर है।





