प्रयागराज में परमधर्म संसद के दौरान निर्णय लिया गया कि घर वापसी करने वालों के लिए शरणागत, भागवत और धर्मपूत जातियां बनाई जाएंगी। इन जातियों के माध्यम से उन्हें सनातन धर्म में पुनः स्थापित किया जाएगा।
ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने घोषणा की कि दूसरे धर्म से सनातन धर्म में वापसी करने वालों को तीन नई जातियों भागवत, शरणागत और धर्मपूत में रखा जाएगा।
स्वामीजी ने बताया कि जो लोग भय, लोभ या बहकावे के कारण सनातन धर्म छोड़कर गए थे और अब अपनी भूल सुधारकर लौटना चाहते हैं, उनके लिए यह व्यवस्था की जाएगी। परमधर्म संसद ने यह प्रस्ताव पारित किया कि 12 वर्षों के परीक्षण के बाद वे अपनी मूल जाति में सम्मिलित किए जा सकते हैं, बशर्ते वे इस अवधि में हिंदू धर्म के नियमों का पालन करें।
धर्मांतरण को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के विचार
स्वामीजी ने कहा कि धर्म केवल सनातन, वैदिक, हिंदू, आर्य या परम धर्म है। अन्य मतों को धर्म कहना अनुचित है। उनके अनुसार, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिख, यहूदी, बहाई, ताओ, शिंटो आदि को उनके मूल नाम रिलीजन या मजहब के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए।
स्वामीजी ने स्पष्ट किया कि ईसाइयों को धार्मिक नहीं, बल्कि रिलीजियस कहा जाए और इस्लाम के अनुयायियों को धार्मिक नहीं, बल्कि मजहबी कहा जाए। उनका कहना था कि यह किसी का अपमान नहीं, बल्कि पहचान को स्पष्ट करना है।
परमधर्म संसद का निर्णय
परमधर्म संसद ने आदेश जारी किया कि सनातन धर्म और उसकी शाखाओं (जैसे जैन, बौद्ध, सिख) को ही धर्म माना जाए। अन्य अब्राहमिक परंपराओं को उनकी मूल संज्ञाओं रिलीजन, मजहब आदि से संबोधित किया जाए।
इस धर्म संसद में ईसाई प्रतिनिधि के रूप में फादर यान उपस्थित थे। संचालन देवेंद्र पांडेय ने किया और विषय स्थापना साध्वी पूर्णांबा ने की।

Author: Sweta Sharma
I am Sweta Sharma, a dedicated reporter and content writer, specializes in uncovering truths and crafting compelling news, interviews, and features.