भारत में मानसून अब पहले जैसा नहीं रहा। कभी समय पर और संतुलित वर्षा के लिए प्रसिद्ध मानसून अब अनिश्चित और भयावह होता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है — जलवायु परिवर्तन, जो न केवल मानसून के पैटर्न को बदल रहा है बल्कि आम जनजीवन, कृषि और आपदा प्रबंधन को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
हिमाचल प्रदेश में मानसून का तांडव
इन दिनों हिमाचल प्रदेश में भीषण बारिश से तबाही का आलम है। सिर्फ मंडी जिले में ही 176 सहित कुल 260 से अधिक सड़कें बंद हो चुकी हैं। इस हफ्ते बादल फटने और भूस्खलन जैसी घटनाओं में अब तक 69 लोगों की मौत हो चुकी है और 37 लोग लापता हैं। पिछले वर्ष मानसून सीजन में राज्य में 550 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
मानसून की अनिश्चितता के पीछे क्या है कारण?
विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन ही इन घटनाओं की जड़ है। जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ता है, मौसम का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
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1901 से 2018 के बीच भारत के औसत सतह तापमान में 0.7°C की वृद्धि हुई।
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वहीं, 1951 से 2015 तक उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर की सतह का तापमान 1°C तक बढ़ गया।
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गर्म हवा ज्यादा नमी सोखती है, जिससे बारिश की तीव्रता भी बढ़ जाती है — प्रति 1°C पर लगभग 7% अधिक वर्षा होती है।
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मई माह में होने वाली बारिश में 1950 के बाद से 50% की वृद्धि दर्ज की गई है।
कमी और अति-वर्षा का चक्र
भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट बताती है कि
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पिछले 50 वर्षों में मौसमी वर्षा में 6% की गिरावट आई है।
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मध्यम बारिश के दिनों में कमी आई है, जबकि 150 मिमी प्रति दिन की भारी बारिश वाले दिन 75% तक बढ़ गए हैं।
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इससे बाढ़, भूस्खलन और फसल बर्बादी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
नतीजा — कृषि संकट, जल संकट और आपदाओं की बढ़ती मार
इस बदले हुए मानसून के कारण एक ओर किसान असमय बारिश और सूखे से परेशान हैं, तो दूसरी ओर शहरों में जल-जमाव और आपदा प्रबंधन की चुनौतियां बढ़ रही हैं। आने वाले वर्षों में यदि जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो मानसून और अधिक खतरनाक रूप ले सकता है।
Author: Sweta Sharma
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