प्रयागराज। महाकुंभ मेला के लिए सभी अखाड़ों से जुड़े साधु-संतों का प्रवेश अब मेला क्षेत्र में होने लगा है। बुधवार को चौथे अखाड़े की पेशवाई (छावनी प्रवेश) हुई। अटल अखाड़ा की पेशवाई का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित कुम्भ मेला क्षेत्र में हुआ, जिसमें 500 से अधिक साधु-संत और 100 से ज्यादा नागा संत शामिल हुए। यह पेशवाई हिन्दू धर्म की आस्था और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है और इस बार कुम्भ मेला क्षेत्र में यह आयोजन भव्य रूप से सम्पन्न हुआ। श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़े की पेशवाई में सबसे आगे देवता के रूप में भगवान गणेश और धर्म ध्वजा निकाली गई।
इसके पीछे महामंडलेश्वर रथ और बग्घी पर सवार होकर निकले। इसके पीछे भस्म-भभूत लपेटे संतों ने लाठियां भांजी, फरसा लहराए और त्रिशूल लेकर चल रहे थे। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मा सरस्वती महाराज की अगुवाई में 500 से ज्यादा साधु-संत और 100 से ज्यादा नागा संत महाकुंभ में बने अपने शिविर में प्रवेश कर गए। 5 किमी की यह यात्रा करीब 2 घंटे में पूरी हुई।
अटल अखाड़े के संतों की पेशवाई में विशेष रूप से नागा संतों का महत्व था, जो अपने कड़े तपस्वी जीवन के लिए प्रसिद्ध हैं। यह पेशवाई कुम्भ के मुख्य आयोजन का हिस्सा बनकर धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गई है। पेशवाई का उद्देश्य न केवल आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देना था, बल्कि हिंदू धर्म की महानता और विविधता को भी प्रदर्शित करना था।
अटल अखाड़े के प्रमुख संतों ने अपने अनुयायियों के साथ पूरे मेला क्षेत्र में भव्य रैली का आयोजन किया। पेशवाई में कई धार्मिक अनुष्ठान, मंत्रोच्चारण, और धार्मिक गीतों की ध्वनियां गूंज रही थीं, जो पूरे क्षेत्र को भक्तिमय बना रही थीं। नागा संत अपने पारंपरिक वस्त्रों में, सिर मुंडे हुए और शरीर पर भस्म लगाए हुए, अपनी विशेष पहचान दिखा रहे थे। उनके साथ अन्य साधु-संत भी चलते हुए अपने धार्मिक कर्तव्यों को निभा रहे थे।
अखाड़े के श्रीमहंत बलराम भारती ने बताया कि पेशवाई बख्शी बाध पुलिस चौकी के पास स्थित अखाड़े से निकाली गई। निराला मार्ग से होकर महानिर्वाणी अखाड़ा, बेणी बांधव मंदिर, दारागंज अड्डा, गंगा भवन, निरंजनी अखाड़ा होते महाकुंभ मेला क्षेत्र में पहुंचेगी। त्रिवेणी मार्ग से सेक्टर 20 में अखाड़े के शिविर में प्रवेश करने वाले है। यह यात्रा करीब 5 किलोमीटर की है।
पेशवाई के दौरान सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था की गई थी। पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मियों ने मेला क्षेत्र में तैनात रहते हुए किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से निपटने के लिए पूरी तैयारी की थी। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाएं भी पर्याप्त थीं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी आपात स्थिति का सामना न करना पड़े।
पेशवाई के आयोजन के साथ ही कुम्भ मेला क्षेत्र में हर तरफ धार्मिक उत्सव का माहौल था। साधु-संतों के अनुयायी उनके पीछे चलकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उत्साहित थे। इस आयोजन को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचे थे। कुम्भ मेला का यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का प्रतीक है, जिसे दुनियाभर में एक अनोखा और ऐतिहासिक धार्मिक मेला माना जाता है।
कुल मिलाकर, अटल अखाड़े की पेशवाई ने कुम्भ मेला के धार्मिक महत्व को और भी बढ़ा दिया और यह मेला एक बार फिर साबित कर रहा है कि यह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है।
