साल की 24 एकादशियों के बराबर पुण्य देती है निर्जला एकादशी
भीमसेन से जुड़ी कथा देती है त्याग और समर्पण का संदेश
निश्चय टाइम्स, डेस्क। हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व है। इसे मोक्षदायिनी एकादशी और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत वर्ष की 24 एकादशियों के बराबर पुण्य देने वाला माना गया है। इस दिन श्रद्धालु बिना जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। मान्यता है कि इस कठिन उपवास से पापों का नाश होता है, दुखों से मुक्ति मिलती है और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में भीमसेन को भोजन का अत्यधिक मोह था, जिससे वह अन्य भाइयों की तरह एकादशी व्रत का पालन नहीं कर पाते थे। यह सोचकर वह अत्यंत चिंतित हो गए कि कहीं भगवान विष्णु की अवज्ञा से उन्हें मोक्ष न मिले। तब महर्षि वेदव्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इस एक व्रत से 24 एकादशियों के पुण्य की प्राप्ति होती है। भीमसेन ने उपवास रखा और उन्हें दिव्य फल की प्राप्ति हुई।ज्योतिषाचार्य पंडित सुनील पांडेय ने बताया कि निर्जला एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह त्याग, संयम और जल की महत्ता को भी दर्शाती है। जल, जो जीवन का मूल आधार है, उसका एक दिन के लिए त्याग करना यह सिखाता है कि सुख-सुविधाओं की तुलना में जीवन मूल्यों का स्थान ऊंचा होता है। इस दिन ईश्वर को समर्पण भाव से की गई साधना जीवन को दिशा देती है। यह व्रत यह भी बताता है कि जब हम त्याग और तप के मार्ग पर चलते हैं, तभी ईश्वर से हमारा सच्चा संबंध बनता है। यह उपवास न केवल आत्मशुद्धि का माध्यम है, बल्कि यह हमें संसारिक मोह से मुक्त होकर आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
