नई दिल्ली : अडानी मुद्दे को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) के सांसदों ने प्रदर्शन किया, काला मास्क पहनकर और संविधान की प्रति लेकर विपक्षी सांसदों ने संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला। विपक्षी सांसदों का कहना था कि मौजूदा सरकार संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान नहीं कर रही है, और इस तरह के कदम भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
इस मार्च में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आरजेडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और कुछ अन्य दलों के सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारे लगाए और जवाबदेही तय किए जाने की मांग की। काले मास्क का पहनना एक प्रतीकात्मक विरोध था, जिसका उद्देश्य सरकार के खिलाफ असहमति और लोकतंत्र के लिए खतरे को दर्शाना था। संविधान की प्रति लेकर मार्च निकालने का उद्देश्य यह था कि संविधान के आदर्शों और मूल्यों को बनाए रखा जाए।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा इस मार्च की अगुवाई कर रहे थे। तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने पिछले कुछ दिन की तरह आज भी इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लिया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया कि सरकार अडानी के मुद्दे पर चर्चा कराने से डर रही है। इस मुद्दे पर संसद में चर्चा करने की उनमें हिम्मत नहीं है। चर्चा कराने से दिक्कत क्यों है… चर्चा लोकतंत्र में ही होती है, वे इससे डरते हैं।
काले मास्क पहनकर और संविधान की प्रति लेकर विपक्षी सांसदों द्वारा निकाले गए इस मार्च का उद्देश्य सरकार के खिलाफ उनकी असंतोष और विरोध को प्रमुख रूप से व्यक्त करना था। सांसदों ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार संविधान के मूल सिद्धांतों को कमजोर कर रही है और स्वतंत्रता, न्याय, और समानता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को चुनौती दे रही है।
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि आज भारतीय संविधान के निर्माता बीआर आंबेडकर की पुण्यतिथि है। यहां अडानी के लिए संवैधानिक अधिकारों का हनन किया गया है। हम सांकेतिक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जब अडानी का नाम आता है, तो भारत सरकार मुद्दे को भटकाने की कोशिश करती है। रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों में अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी और कंपनी के अन्य अधिकारियों पर अमेरिकी प्रॉसिक्यूटर्स की ओर से आरोप लगाए गए।
मार्च के दौरान विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान और उसके आदर्शों के खिलाफ कई कदम उठाए हैं। इनमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप, मीडिया की आज़ादी पर हमले, और विभिन्न संस्थाओं की स्वायत्तता को कमजोर करने जैसे मुद्दे प्रमुख थे।
इस मार्च का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी था कि संविधान को हर भारतीय नागरिक के जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाना और यह सुनिश्चित करना कि सरकार और संसद संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभाएं। काले मास्क का पहनना एक सांकेतिक कदम था, जिससे यह संदेश दिया गया कि विपक्षी दल सरकार के फैसलों से असहमत हैं और लोकतंत्र के मूल्यों के बचाव के लिए खड़े हैं।
मार्च का समापन राष्ट्रपति भवन पर हुआ, जहां विपक्षी सांसदों ने संविधान की प्रति राष्ट्रपति के पास पहुंचाई और सरकार के कार्यों के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त की। इस कदम ने विपक्ष को एकजुट किया और यह दिखाया कि वे संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इस प्रकार, यह मार्च न केवल सरकार के खिलाफ विरोध का एक रूप था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र और संविधान के महत्व को भी रेखांकित करने का एक प्रयास था।
इसी के बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल पूरे मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराए जाने की मांग कर रहे हैं। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में इस मामले को लेकर उद्योगपति गौतम अडानी की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की थी। वहीं अडानी ग्रुप ने सभी आरोपों को निराधार बताया है।
