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संसदीय समिति को नफरती भाषण संबंधी दिशा-निर्देशों पर मेटा से सवाल पूछने चाहिए: तृणमूल सांसद साकेत गोखले

नई दिल्ली। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी संसद की स्थायी समिति के सदस्य और तृणमूल कांग्रेस सांसद साकेत गोखले ने बुधवार को कहा कि अगर समिति मेटा के अधिकारियों को बुलाती है, तो उनसे कंपनी के तथ्यों की जांच (फैक्ट चेकिंग) को रोकने के फैसले और अभद्र भाषा तथा गलत सूचना पर इसके सामग्री दिशानिर्देशों में बदलाव के बारे में पूछताछ की जानी चाहिए।

गोखले की टिप्पणी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की टिप्पणियों के एक दिन बाद आई है, जो समिति के प्रमुख हैं। दुबे ने कहा था कि समिति, इसके सीईओ मार्क जुकरबर्ग के एक पॉडकास्ट के दौरान दिए गए बयान पर विवाद के बीच भारत की छवि ‘धूमिल’ होने को लेकर सोशल मीडिया दिग्गज मेटा के अधिकारियों को बुलाएगी।

जुकरबर्ग ने एक पॉडकास्ट के दौरान कथित तौर पर कहा था कि कोविड-19 महामारी के बाद, भारत सहित अधिकांश देशों की सरकारें 2024 में चुनाव हार गईं।

दुबे को लिखे एक पत्र में गोखले ने कहा कि उसी साक्षात्कार में, जुकरबर्ग ने यह भी घोषणा की थी कि मेटा अपने ‘फैक्ट चेक’ कार्यक्रम को समाप्त कर देगा और अपने सामुदायिक दिशानिर्देशों में भी बदलाव करेगा।

राज्यसभा सदस्य गोखले ने कहा, ‘‘कई मौकों पर यह बात सामने आई है कि भारत में नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए मेटा प्लेटफॉर्म (फेसबुक और इंस्टाग्राम) का काफी दुरुपयोग हुआ है। मेटा द्वारा नफरत फैलाने वाली सामग्री को नहीं हटाने को लेकर और ऐसी सामग्री फैलाने वाले खातों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर चिंताएं हैं।’’

उन्होंने यह भी कहा कि ‘गलत सूचना और फर्जी खबरें’ फैलाने में मेटा के प्लेटफॉर्म की भूमिका की ‘बहुत आलोचना’ भी हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘चुनावों के समय, कई स्वतंत्र समीक्षकों ने भी यह देखा है कि मेटा कुछ राजनीतिक दलों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाता है और राजनीतिक विषयवस्तु के लिए दिशा-निर्देशों को समान रूप से लागू नहीं करता है।’’

गोखले ने कहा कि मेटा पर अक्सर चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के दिशा-निर्देशों का पालन न करने और कुछ राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार में इस्तेमाल के लिए छद्म अकाउंट बनाने की अनुमति देने का आरोप लगाया जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि आपने सही कहा, मेटा संभावित रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करता है और हमारे लोकतंत्र पर इसके कार्यों के प्रभाव की जांच की जानी चाहिए।’’

तृणमूल कांग्रेस नेता ने कहा कि जब समिति मेटा के अधिकारियों को बुलाए, तो उसे मेटा की तथ्यान्वेषी प्रणाली को वापस लेने और नफरत फैलाने वाले भाषण और गलत सूचनाओं पर कंपनी के विषयवस्तु दिशा-निर्देशों में बदलाव के बारे में भी उनसे सवाल करना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि समिति को मेटा के ‘‘भारत में चुनिंदा राजनीतिक दलों के प्रति कथित पूर्वाग्रह’’ और ‘‘नफरत फैलाने वाले भाषण, फर्जी खबरों और उत्पीड़न को बढ़ावा देने में मेटा के एल्गोरिद्म के प्रभाव’’ पर उनसे सवाल पूछना चाहिए।

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य ने दुबे से आग्रह किया कि जब समिति मेटा को सुनवाई के लिए बुलाए तो इन मुद्दों को बैठक के एजेंडे में शामिल किया जाए।

उन्होंने कहा, ‘‘ये भारतीय लोकतंत्र पर बहुत प्रभाव डालने वाले मामले हैं और उच्चतम स्तर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निगरानी रखना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है।’’

जुकरबर्ग ने कथित तौर पर एक पॉडकास्ट में दावा किया कि 2024 में दुनिया भर के चुनावों में, भारत सहित अधिकांश मौजूदा सरकारों ने सत्ता खो दी।

इस पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पलटवार करते हुए कहा कि जुकरबर्ग का बयान ‘‘तथ्यात्मक रूप से गलत’’ था और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, भारत ने 2024 के आम चुनावों का संचालन किया जिसमें 64 करोड़ से अधिक मतदाता शामिल थे।

दुबे ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में वैष्णव के पोस्ट का हवाला देते हुए कहा कि संसदीय समिति इस ‘गलत जानकारी’ के लिए मेटा को बुलाएगी और उसे इस बयान के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए।

Admin Desk
Author: Admin Desk

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